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चरित्र-योजना
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उसके चारित्रिक पतन का कारण है : कुबुद्धि रानी के प्रति मोह और उत्थान का कारण है सुबुद्धि के संदेश का ग्रहण । सुबुद्धि रानी उसके लिए प्रेरणा का स्रोत है, वही उसे हिताहित का बोध कराती है और उसी के संकेत पर वह कुबुद्धि का परित्याग भी कर देता है।'
‘शत अष्टोत्तरी' काव्य का चेतन क्रियाशील कम है। वह मौन भाव से सुबुद्धि के संदेशों को सुनता जाता है, जबकि 'चेतन कर्म चरित्र' का चेतन सचेत, शूरवीर और योद्धा है। काव्य में उसके वीरतापूर्ण कार्यकलापों का सुन्दर चित्रण है। वह अपने भुजबल पर राज्य करता है । प्रबल शत्रु के सम्मुख आत्म-समर्पण करना उसे असह्य है । शूरवीरों को उद्बोधन देने की कला में वह प्रवीण है । वह स्वयं को बचाकर शत्रु-पक्ष पर करारी चोट करता है। वह वीर योद्धा की भाँति अपने सैनिकों सहित अपने चिर शत्रुओं (मोह, राग, द्वेष, काम, क्रोध, अष्टकर्म आदि) से अनवरत रूप से युद्ध करता है। यह युद्ध लम्बे काल तक चलता है।
१. (क) चेतन कर्म चरित्र, पद्य ७ से ११, पृष्ठ ५६ । (ख) एरी मेरी रानी तोसों कौन है सयानी सखी,
ए तो बापुरी बिरानी, तू न रोस गहिये । इनसों न नेह मोहि, तोहि सों सनेह बन्यो, राम की दुहाई कहूँ, तेरे गेह रहिये ।।
-शत अष्टोत्तरी, पद्य १७, पृष्ठ ११-१२ । २. शत अष्टोत्तरी, पद्य १७ से १०६, पृष्ठ १२ से ३२ । ३. (क) चेतन कर्म चरित्र, पद्य ५ से ७, पृष्ठ ५५-५६ ।
(ख) वही, पद्य ४५ से ४६, पृष्ठ, ६० । (ग) वही, पद्य ६६ से ६७, पृष्ठ ६२ ।
(घ) वही, पद्य २२१ से २२४, पृष्ठ ७७ । ४. वही, पद्य १७ से १८, पृष्ठ ५६-५७ । ५. सूरन की नहिं रीति, अरि आये घर में रहैं । के हारे के जीत, जैसी ह तैसी बने ।
-वही, पद्य ६७,पृष्ठ ६२ । ६. वही, पद्य १६८, पृष्ठ ७२ ,