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चरित्र-योजना
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जोध देश के राजा चित्रागंद का पुत्र है । राज्य - सिंहासन पर आरूढ़ होते ही उसकी क्रीड़ाप्रियता एवं विलासवृत्ति का पता चलता है । उसमें अन्ध श्रद्धा का भाव है । वह बाह्याडम्बर में विश्वास रखने वाले एक योगी के कहने से देवी पर चढ़ाने के लिए मानव तक की वलि देने के लिए तत्पर हो जाता है । कालान्तर में उसमें सत्यासत्य का निर्णय लेने की क्षमता भी आ जाती है और उसका चरित्र परिष्कृत हो जाता है ।
अन्य चरित्र
'नेमीश्वर रास' काव्य में समुद्र विजय, उग्रसेन, भीम, बलभद्र, वसुदेव, नन्द आदि, 'सीता चरित' में वज्रजंघ, सुग्रीव, दशरथ, विद्याधर, कुम्भकर्ण, मेघनाद आदि, 'बंकचोर की कथा' में बंकचोर, 'यशोधर चरित' में कोतवाल, 'श्रेणिक चरित' में राजा चन्द्रप्रदोत, चन्द्रसेन आदि, 'राजुल पच्चीसी' में उग्रसेन, 'नेमिनाथ चरित' में समुद्र विजय, 'शीलकथा' में राजा पद्मसेन, सेठ महीदत्त, धनदत्त आदि मध्यम श्रेणी के चरित्र हैं । उनका शील- विवेचन अत्यन्त सीमित परिधि के भीतर हुआ है ।
नारी चरित्र
मध्यम श्रेणी के नारी चरित्रों में कैकेयी और मन्दोदरी (सीता चरित), कुन्ती, यशोदा, शिवदेवी ( नेमीश्वर रास), राजुल की माता ( राजुल - पच्चीसी, नेमिचन्द्रिका), चन्द्रमती ( यशोधर चरित), श्रीमती ( शीलकथा), वसुमित्रा (श्र ेणिक चरित) आदि सामान्य चरित्र हैं ।
सारांश यह है कि आलोच्य काव्यों में सभी मध्यम श्रेणी के पात्रों की योजना कथा को उचित गति और नायक या नायिका के चरित्र को
१.
नाना क्रीड़ा करें जु राय । विषइन की इच्छा अधिकाय || कबहुं गज चढ़ि वन में फिरें । पंछी जुत बहु
२० वही ।
३.
वही ।
क्रीड़ा करें ॥ - यशोधर चरित