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२०० जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन उत्कर्ष प्रदान करने के लिए की गयी है । इन काव्यों में ऐसे चरित्रों का भी अपना स्थान है।
अधम चरित्र
ये चरित्र मानवोचित गुणों से शून्य एवं आचरणभ्रष्ट हैं और आद्यंत दुष्ट प्रकृति के बने रहते हैं। ये प्रायः शीलविभूषित आदर्श पात्रों के प्रतिद्वन्द्वी हैं और उन्हें विषम परिस्थितियों में डालकर भीषण यातनाएँ देते हैं । वस्तुतः ये पतित और विक्कृत चरित्र हैं ।
प्रबन्धकाव्यों में इनकी योजना अनावश्यक नहीं है। जैसे अंधकार प्रकाश को और दुःख सुख को प्रिय बनाता है, वैसे ही ये चरित्र आदर्श चरित्रों को प्रिय और आलिंगन योग्य बनाते हैं। उनके लिए संघर्षात्मक भूमियाँ निर्मित कर उन्हें स्वर्ण की तरह तपाते, उनके चरित्र को निखारते और उन्हें कान्तियुक्त बनाते हैं। सच पूछो तो ये ही काव्य की महत् घटनाओं के जन्मदाता हैं और ये ही कथावस्तु को गतिशील बनाकर तथा उसमें कुतूहल की सृष्टि कर उसे लक्ष्य तक पहुँचाने में अपना महत्त्वपूर्ण योग देते हैं। __ समीक्ष्य प्रबन्धकाव्यों में 'पार्श्वपुराण' में कमठ, 'सीता चरित' में रावण, 'यशोधर चरित' में रानी अमृतमती, 'शीलकथा' में धनदत्त श्रेष्ठि, दूती, राजगृह नगरी का राजकुमार, हंसद्वीप के राजा की रानी, आदि भ्रष्ट चरित्र हैं।
कमठ
__कमठ 'पार्श्वपुराण' काव्य का प्रतिनायक है और उसका जीव प्रत्येक भव में पार्श्वनाथ का प्रतिद्वन्द्वी है । वह आरम्भ से ही कुटिल प्रकृति, दुर्बुद्धि और पाप की समता धारण किये हुए है। वह अपनी वक्र गति और वैर-भाव को न छोड़ते हुए अपने भाई का पक्का शत्र बना रहता है। वह कामांध
५. पार्श्वपुराण, पद्य ५४-५५, पृष्ठ ८ ।