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जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन
हैं । मैंने नेमीश्वर के रूप में धर्म-महंत पा लिया है। मैं उन्हीं की आराधना करूंगी। दुनिया में ऐसी कौन माता है जो गोद के बालक को छोड़कर पेट के बालक की आशा करे ?'२
वह सच्ची प्रेमिका है। उसका प्रेम अन्धा नहीं, सजग है। वह अपना प्रेम पाने के लिए अथक प्रयास करती है :
ए तुम सुनहु न नेमिकुमार, बचन सुनि लीजिये हो । ए कोई कहियो जाय, विछोहा न कीजिये हो ॥ ए कोई पठवहु चतुर सुजान, कुमर मुरकाइये हो।
ए मैं विनती करौं कर जोरि, यहाँ उन्हें लाइये हो ॥ राजुल का विरहिणी स्वरूप भी उसके चरित्र को दीप्ति प्रदान करता है । प्रिय-पथ की पथिका बनकर भी वह 'पिया-पिया' कहकर विलाप करती है। एकाकी निर्जन पथ में जब उसे कोई उत्तर नहीं मिलता तो वह दीर्घ निश्वास छोड़ती है। भाँति-भाँति से रुदन करती है । उसके हृदय के दुःखात्मक संसार को पहचानकर वन के पक्षी भी आँसू बहाते हैं।
राजुल का तपस्वी रूप भी लोमहर्षक है । वह कर-कंकण और मुक्ताओं को तजकर हार इत्यादि को तोड़ डालती है। एक पग से खड़ी होकर नेमिनाथ की स्तुति करती है और कठोर तपश्चर्या में लीन हो जाती है।'
मनोरमा
"शील कथा' में उसका चरित्र एक शीलवती नारी के रूप में चित्रित
१. नेमिचन्द्रिका (आसकरण), पृष्ठ १८ ।
राजुल पच्चीसी, पद्य ७, पृष्ठ ४ ।
नेमिचन्द्रिका (आसकरण), पृष्ठ १८-१६ । *. वही, पृष्ठ १९-२० । ५. नेमीश्वर रास, पद्य १०५०, पृष्ठ ६१ । ६. राजुल पच्चीसी, पद्य १६ से २३, पृष्ठ ११-१२॥