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जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन
वे परम प्रतापी हैं । उन पर कोप करने का अर्थ है-भूचाल को निमंत्रण देना।' प्रश्न का सीधा और यथोचित उत्तर देने की कला में वे पटु है। रावण को भाँति-भांति से समझाने में वे उपदेशक और उद्बोधक का काम करते हैं। अशोक वाटिका में एक वृक्ष पर बैठकर सीता के पास राम की मुंदरी डालकर पल भर के लिए छिप जाने में उनकी कीड़ाप्रियता और भाव-मर्मज्ञता झलकती है। सीता को 'माता' कहकर संबोधित करने में और उसे पूरी सान्त्वना देने में उनकी संवेदनशीलता का परिचय मिलता है।
वे तेज और विप्लव के रूप हैं। लंका में रावण की आज्ञा से उन्हें बाँधे जाने के समस्त प्रयत्न निष्फल चले जाते हैं।६ राम-रावण-युद्ध के समय उनका अद्भुत पराक्रम सभी को आश्चर्यचकित कर देता है।
कृष्ण
__ 'नेमीश्वर रास' में कृष्ण का जन्म एक चमत्कार की घटना है। उनकी छींक के साथ कारागृह का द्वार खुल पड़ने में, अथाह जल से भरी हुई यमुना नदी द्वारा उनके चरण-स्पर्शमात्र से वसुदेव को मार्ग दे देने में उनकी अलौकिक शक्ति की ओर संकेत है।' कृष्ण जैसे सुत को पाकर यशोदा
१. सीता चरित, पद्य १२८० से १२८४, पृष्ठ ६६ । २. क्यों आये कारन कहहु, कहिये मन संदेह । रामचन्द्र तिय लेन कौ, मैं आयौ तुम गेह ।।
-वही, पद्य १२६५, पृष्ठ ७० वही, पद्य १२६३ से १३०८, पृष्ठ ७० । वही, पद्य १३१०-११, पृ० ७१ ।
वही, पद्य १३१५ से १३१७, पृष्ठ ७१ । ६. वही, पद्य १३३४, पृष्ठ ७२ । ७. वही, पद्य १४३६ से १४३६, पृ० ७६ ।
नेमीश्वर रास, पद्य १०८ से ११०, पृष्ठ ७ ।