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प्रबन्धत्व और कथानक-स्रोत
१६५ 'चेतन कर्म चरित्र' की कथावस्तु उत्पाद्य है। इसमें चेतन, मोह, कुबुद्धि, सुबुद्धि, कर्म-प्रकृतियों आदि को कार्यरत सजीव पात्रों के रूप में चित्रित कर चेतन और आत्म-तत्त्वों की अनात्म-तत्त्वों पर विजय दिखलायी गयी है । इस प्रकार के साहित्य की एक सुदीर्घ परम्परा रही है। भैया भगवतीदास से पूर्व उपमितिभव-प्रपंचकथा (सिद्धर्षि) प्रबोधचन्द्रोदय (कृष्ण मिश्र), मयण पराजय चरिउ (हरिदेव), मोह-पराजय (यशःपाल), संकल्प सूर्योदय (वेंकटनाथ), प्रबोध चिन्तामणि (जयशेखर सूरि), मयण जुद्ध (बूचराज), धर्म विजय (भूदेव शुक्ल), चैतन्य चन्द्रोदय (कर्णपूर), ज्ञानसूर्योदय (वादिचन्द्र सूरि), नाटक समयसार (बनारसीदास) आदि कृतियों का प्रणयन हो चुका था, जिनमें धर्म-दर्शन के सूक्ष्मातिसूक्ष्म तत्त्वों को या मनोविकारों को मूर्तरूप में चित्रित किया जा चुका था।
___ अनुमान किया जा सकता है कि 'चेतन कर्म चरित्र' के कवि को अपने काव्य-प्रणयन की प्रेरणा इसी प्रकार की कृतियों से मिली हो, अन्यथा इस काव्य का कथानक सर्वथा काल्पनिक प्रतीत होता है । कवि की दृष्टि दर्शन और आध्यात्म की वीथियों में घूमती हुई इस सुन्दर प्रबन्ध को रूपायित करने में सफल हुई है । इसके माध्यम से कवि ने यह सिद्ध करने की चेष्टा की है कि जब तकं चेतन आत्मभावों से अनुराग कर अनात्म भावों से अनवरत युद्ध नहीं करता तब तक उसे शुद्धात्म तत्त्व की उपलब्धि असम्भव है।
'शतअष्टोत्तरी' काव्य का कथानक 'चेतन कर्म चरित्र' की भाँति काल्पनिक है । दोनों एक ही शैली में रचे गये हैं; दोनों का मूल उद्देश्य एक ही है । अन्तर इतना है कि पहले के कथानक का धरातल सूक्ष्म है, दूसरे का सुदृढ़ । एक में कवि का व्यक्तित्व ऊपर उठा हुआ दिखायी देता है, दूसरे में वह भीतर जा बैठा है।
'सूआ बत्तीसी' का कथानक भी कवि की कल्पना की उपज है, जिसकी सृष्टि रूपक-प्रतीक शैली में की गयी है । यहाँ तोता आत्मा के प्रतीक रूप में चित्रित हुआ है, जिसका उद्धार गुरु-शिव-संगति से ही सम्भव बतलाया