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१७४ जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन में मिलती है। प्रथम काव्य में विद्याधर अति प्राकृत एवं देवी गुण सम्पन्न रूप में सामने आता है और दूसरे में अति चपल, क्रीड़ा-प्रिय और पंचेन्द्रियों के पक्षकार के रूप में पूर्ण भौतिकवादी सिद्ध होता है। ___ भैया भगवतीदास ने 'मधुबिन्दुक चौपई' में विद्याधर को अपनी पत्नी के साथ विमान द्वारा आकाश-मार्ग से जाती हुई अवस्था में निदर्शित किया है। विद्याधर अपनी प्रिया के आग्रह से अपने विमान को उतारता है और नीचे अंधकूप में पड़े हुए एक संकटग्रस्त पुरुष के उद्धार का प्रयास भी करता है। पति-पत्नी के मध्य चलते हुए वार्तालाप में विद्याधर की विवेकशीलता एवं दूरदशिता पर प्रकाश पड़ता है और उस पुरुष को वेदना से विमुक्त करने की उत्कंठा में उसके गुरुत्व की गरिमा प्रकट होती है। कवि ने विद्याधर को यहाँ सुगुरु के रूप में चित्रित किया है। विद्याधरी
दिव्य नारी पात्रों में विद्याधरी का प्रसंग भी आता है । 'मधुबिन्दुकचौपई' में विद्याधर के साथ उसकी पत्नी का भी उल्लेख है । विमान में बैठकर संचरण करती हुई अवस्था में उसका चित्र सामने आता है। वह करुणाशील और परदुःखकातर है। अंधकूप में वट-वृक्ष की जटा से लटकते हुए, सो द्वारा काटे जाने के भय से आकुल और मधुमक्खियों के काटे जाने के कारण वेदना-व्यथित पुरुष के उद्धार के लिए अपने पति से निवेदन ही नहीं, हठ भी करती है। उसके चरित्र में परोपकार की गहरी छाप है।
१. पंचेन्द्रिय संवाद, पद्य ४ से ३, पृष्ठ २३९ । २. मधुबिन्दुक चौपई, पद्य २४, पृष्ठ १३७ । ३. वही, पद्य ३४-३५, पृष्ठ १३८ ।
वही, पद्य ४६, पृष्ठ १३६ । तिय निरख्यो तिहं बार, कोउ पुरुष संकट पर्यो। हे पिय ! दुखहि निवार, निराधार नर कूप में। दुख अपार अति घोर, पर्यो पुरुष संकट सहै। कछु न चलत है जोर, हे प्रभु याहि निवारिये ॥