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चरित्र-योजना
कुछ प्रबन्धकाव्यों में प्रतीकीकृत या मानवीकृत पात्रों की योजना होती है। ये पात्र शरीरी और अशरीरी, दोनों प्रकार के होते हैं और ये प्राय: मनोवैज्ञानिक भूमि पर आधृत होते हैं। कवि बड़ी पटुता से इन्हें प्रबन्ध में स्थान देकर पाठकों के हृदय के साथ तादाम्य-योग्य बनाता है।
सारांश यह है कि प्रबन्धकाव्य के पात्र ही प्रबन्धकार के लक्ष्य को साधते हैं। कवि काव्यगत लक्ष्य को दृष्टि में रखकर तदनुकूल पात्रों का चयन करता है और उनके चरित्रों में रंग भरकर सहृदयों के सामने प्रत्यक्ष करता है। वह प्रबन्ध में आये हुए पात्रों के कथन, कथोपकथन, क्रियाकलाप, हाव-भाव, मुद्रा और चेष्टाओं आदि के द्वारा उनका चरित्रांकन करता है। इनके अतिरिक्त स्वयं कवि द्वारा कहे गये कथनों से भी पात्रों के चरित्र पर प्रकाश पड़ता है।
आलोच्य प्रबन्धकाव्य और चरित्र
___ आलोच्य प्रबन्धकाव्यों के वस्तु-पट पर जिन पात्रों को चित्रित किया गया है उनमें आदर्श, सामान्य और अधम आदि विविध श्रेणियों के पात्रों का स्थान है। उनके प्रणेताओं ने उन अनेक पात्रों के माध्यम से मानव के स्वीकारात्मक एवं निषेधात्मक जीवन-मूल्यों पर प्रकाश डालने की चेष्टा की है। इस हेतु उन्हें संघर्षात्मक परिस्थितियों में डालकर द्वन्द्व और उस पर विजय प्राप्त करने के लिए छोड़ दिया गया है ताकि मानव उनके चरित्रों से प्रेरणा ग्रहण कर सके। कहना चाहिए कि उन्होंने विभिन्न पात्रों के शील-विवेचन द्वारा हिंसा पर अहिंसा, वैर पर क्षमा, पाप पर पुण्य, राग पर विराग आदि की विजय का आदर्श समाज के सामने रखा है । अतएव उनकी चरित्र-व्यवस्था अनेक सूत्रीय है।
विवेच्य कृतियों के चरित्रों को वर्गीकृत करने पर सामान्यतः उनके प्रमुख चार वर्ग सामने आते हैं :
(१) अतिमानव (अमानव); (२) मानव : (क) उत्तम, (ख) मध्यम, (ग) अधम;