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प्रबन्धत्व और कथानक-स्रोत
कथानक को नये सांचे में नवल रूप दिया है । इन कृतियों के कथानक की प्राचीनता में नवीनता को समाविष्ट कर यह सिद्ध कर दिया है कि एक ही कथानक के आधार पर कितनी ही सफल कृतियों का प्रणयन किया जाना कठिन नहीं है । वस्तुतः ये काव्य इसी आदर्श के बोलते हुए प्रमाण हैं।
रामचन्द्र 'बालक' कृत 'सीता चरित' काव्य का कथा-स्रोत रविषेण कृत 'पद्मचरित' में देखा जा सकता है। ‘पदमचरित' में राम के समग्र जीवन का चित्र समाहित है । इसमें से सीता के जीवन-वृत्त और उसके जीवन की प्रमुख घटनाओं का चयन 'सीता चरित' के प्रणेता ने अपनी दृष्टि से किया है । इसकी पृष्ठभूमि 'पद्मचरित' के अनुसार है। इसका आरम्भ सीता के निर्वासन के प्रसंग से किया गया है। आगे चलकर लवकुश की उत्पत्ति का चित्र प्रस्तुत कर उनके निवेदन पर नारद के मुख से राम-सीता की पूर्व कथा को कहलवाया गया है। काव्य में लोक तत्त्व को अधिक प्रश्रय दिया गया है। ___ लक्ष्मीदास के 'श्रेणिक चरित' काव्य का कथानक पौराणिक है । राजा श्रेणिक तीर्थंकर महावीर की सभा के प्रमुख श्रोता और प्रश्नकर्ता थे। उनके चरित्र के आकर्षण का मूल कारण उनका हृदय-परिवर्तन है, उनकी साधना और शंका-समाधान प्रवृत्ति है । गुणभद्राचार्य कृत 'उत्तरपुराण' के चतुः सप्ततितमं पर्व (पृष्ठ ४७३) में गौतम गणधर द्वारा श्रेणिक से कहा गया है कि 'दर्शन-विशुद्धि आदि कितने ही कारणों से तू तीर्थंकर नामकर्म का बन्ध कर रत्नप्रभा नामक पहली पृथ्वी में प्रवेश करेगा, मध्यम आयु में तू वहाँ का फल भोगकर निकलेगा और तदनन्तर हे भव्य ! तू इसी भरत क्षेत्र में उत्सर्पिणी काल में सज्जनों का कल्याण करने वाला महापद्म नाम का पहला तीर्थकर होगा। इस प्रकार श्रेणिक ने मिथ्यात्व एवं मूढ़ता त्यागकर अपने जीवन में जो साधना की है, उसी से आकृष्ट होकर कवि लक्ष्मीदास ने 'श्रीणिक चरित' की रचना की है।
आचार्य शुभचन्द्र ने संस्कृत में 'श्रोणिक चरित' की रचना की थी। कवि ने अपने काव्य की कथा का स्रोत वहीं से ग्रहण किया है और उसे