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जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन
गया है । इस काव्य के वस्तु-विन्यास में कवि-कौशल की झलक मिलती है। कहना न होगा कि इसका कथानक-स्रोत कवि-हृदय ही हो सकता है । ___'पंचेन्द्रिय संवाद' पर किसी पूर्व कृति की छाप दिखलायी नहीं देती। इसकी वस्तु उत्पाद्य प्रतीत होती है । इसके प्रणयन की प्रेरणा कवि को कहाँ से मिली, यह नहीं कहा जा सकता। कवि ने इसे 'बाल-ख्याल' कहकर अपने स्वतन्त्र प्रयास की ओर इंगित किया है। आँख, नाक, कान, रसना आदि इन्द्रियों और उनके राजा मन को पराजय और शुद्धात्मा की विजय को निदर्शित करने के लिए इस स्वतन्त्र कथानक का आश्रय लिया गया है। अनूदित ___ इन काव्यों की एक परम्परा रही है । विवेच्य युग में जैन कवियों द्वारा इस प्रकार के अनेक काव्यों की सृष्टि हुई है । इन कवियों ने अनूदित काव्यों की पूरी कथावस्तु पूर्ववर्ती कृतियों से ली है। ऐसी रचनाओं के 'परिचय' के सन्दर्भ में इनके कथानक-स्रोत का उल्लेख किया जा चुका है। निष्कर्ष
निष्कर्ष यह है कि पौराणिक वर्ग की अधिकांश रचनाओं के कथानकस्रोत के लिए हमें अतीत के जैन-साहित्य की ओर झाँकना पड़ता है। यही साहित्य उनका पृष्ठाधार है । यहाँ से कथानक को मोटे रूप में ग्रहण कर लिया गया है और फिर कल्पना की कूची से उसे संवारा गया है, उसमें स्थल-स्थल पर मौलिक उद्भावनाओं को स्थान देकर उसे नये रूप में प्रस्तुत किया गया है । धार्मिक या नैतिक वर्ग की कृतियों के कथानकों को प्रायः लोक-कथाओं पर आश्रित समझना चाहिए। उनके प्रणेताओं ने धार्मिक या नैतिक आदर्शों की अभिव्यंजना के लिए ही इन कृतियों को रूपायित किया है । उनकी वस्तु उत्पाद्य प्रतीत होती है । दार्शनिक या आध्यात्मिक श्रेणी के काव्यों के प्रणयन की प्रेरणा पूर्वकालिक दार्शनिक कृतियों से मिली है। कथानक उनका नया है । अनूदित कृतियों के कथानक पूर्ववर्ती काव्यों से ज्यों की त्यों ग्रहण किये हैं । नवीनता है तो उनमें भाषा-शैली की।
.. पंचेन्द्रिय संवाद, पद्य १५०, पृष्ठ २५२ ।