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प्रबन्धत्व और कथानक-स्रोत
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सीघर ही तीजो बाण लियो कर तांण के। कवच फोडि गुण तोड़ि षता अवसाण के ॥ तब सलेस सम्हारि क्रोध बहुतै भयो।
मार्यो मुष में बाण सांस को ले गयो॥ (ख) विभिषन रावण भिड़े पड़े बाण बहु भेद ।
तर्जे बाण दौन्यू तहाँ, बाण बाण को छेद ॥ 'श्रेणिक चरित' में वस्तु-वर्णन प्रायः संक्षिप्त और क्षिप्र हैं। यह सच है कि लम्बे-लम्बे वर्णनों में वह रसमयता नहीं होती जो संक्षिप्त और सारगर्भित वर्णनों में होती है । कृति में अपनी स्थानगत विशेषताओं से युक्त विवाह का दृश्य मनोहारी बन पड़ा है :
रचि मंडप वेदी सुभग, तोरणादि सुभ साज । कन्या तिलकावती तनो, माण्ड्यो ब्याह समाज ॥ बाजिन बहुकामिनी गावें मंगलाचार । उपश्रीनिक कन्या दोउ जोड्या कर विधिसार । देव अग्नि द्विज साषि जल, कन्यादान प्रधान ।
भयो ब्याह हरषत स्वजन, वस्त्राभरन मंडान ॥ कुमार की सहायता से राजा द्वारा न्याय किये जाने का दृश्य भी अनेक विशेषताओं से युक्त और मार्मिक है :
मेल्यो महिमें कुमर आगे कहै कुमार मुष भासि । हाथ छुरो ले दोइ करो इन बांटौ बराबर तासि ।हो भाई०॥ यो सुत मेरौ नहीं कुमर जी, वसुदत्ता है दानि । हूँ यों ही झगड़े थी पापिनि, आधो आधि न करानि हो भाई।। सुत धन सगलो इनहै सौंप्यो, सुनि जानि बहुबात ।
ए सुत ल्हौरी तिय को निश्चै, धन सुत ताहे दात हो भाई०॥ १. सीता चरित, पृष्ठ ७६ । २. वही, पृष्ठ ८२। । ५. श्रोणिक चरित, पृष्ठ ६ । १. वही, पृष्ठ ३२ ।