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जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन
इस काल के कुछ कवि ऐसे हैं जिन्होंने पुरातन काव्य-साहित्य से आख्यान ग्रहण कर 'नद्यानवघटेजलम्' की किंवदन्ती के अनुसार मौलिक प्रबन्धकाव्य प्रस्तुत किये हैं । उन्होंने पुरातन आख्यानों में रीतियुगीन कला एवं संस्कृति के तत्त्वों का अद्भुत मिश्रण कर तथा उनमें मौलिक उद्भावनाओं को संजोकर अतीत को वर्तमान के साँचे में ढाल दिया है।
इन कवियों में से कुछ के काव्य ऐसे हैं, जिनकी कथावस्तु काल्पनिक है और जो उनके समकालीन कवियों या पूर्ववर्ती कवियों के काव्यों की शैली के आधार पर रचे गये हैं।
हमें इसी काल में ऐसे भी जैन कवि दिखायी देते हैं जिन्होंने अधिकांशतः संस्कृत के प्रबन्धकाव्यों का केवल छन्दोबद्ध अनुवाद ब्रजभाषा में - कर दिया है।
कथानक-स्रोत की दृष्टि से आलोच्य कृतियों को कुछ वर्गों में रख लेना उचित होगा:
१. ऐतिहासिक या पौराणिक; २. धार्मिक या नैतिक; ३. दार्शनिक या आध्यात्मिक;
४. अनूदित ऐतिहासिक या पौराणिक
इस श्रेणी के काव्यों-'पार्श्वपुराण', 'नेमीश्वर रास', 'नेमिनाथ चरित', 'राजुल पच्चीसी', 'नेमिनाथ मंगल', 'नेमिचन्द्रिका' (आसकरण), 'नेमिचन्द्रिका' (मनरंगलाल), 'श्रेणिक चरित' आदि के कथा-स्रोतों को देखने के लिए हमें पूर्ववर्ती इतिहास-पुराण विषयक रचनाओं का सहारा लेना पड़ता है। इनमें जैनों के प्रायः त्रिषष्ठिशलाका पुरुषों के चरित्र को रूपायित किया गया है । इनकी कथा की पृष्ठभूमि मूलतः ऐसी ही कृतियों में. देखी जा सकती है।