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प्रबन्धत्व और कथानक-स्रोत
नाग जगायो नागिनी, जाणिक सनमुष आयौ काल तो। विष की ज्वाला रालतो, आयो जब देष्यो गोपाल तौ ॥रास०॥ काव्य के युद्धविषयक वर्णन भी अधिक सजीव हैं : रण भेरी बाजी तहाँ, दोउ सेना सनमुष आय तौ। आपस में झूझण लगी, चतुरगि सेना सनमुष जाय तौ ।।रास०॥ गज सेती गज आभिड्या, घुड़ला स्यों धुड़ला की मार तो। रथ सेती रथ ही लड़े, पैदल मेती पैदल सार तौ ॥रास०॥
'सीता चरित' में आकलित दृश्य संक्षिप्त और सरस हैं। उसमें चित्रों के विधान में नव्यता का परिपार्श्व है । दूसरे शब्दों में वहाँ रूढ़ वर्णनों के परित्याग में भी नवीनता की झलक है। कवि ने काव्य में नीरसता-युक्त लम्बे वर्णनों को स्थान न देकर केवल उन संतुलित वर्णनों को स्थान दिया है, जिनकी परिस्थिति-संयोजना, वस्तु-विकास, तीव्र भावान्विति एवं रसवत्ता के लिए अनिवार्यता थी।
सीता को निर्वासन से पूर्व स्वप्न दिखायी देता है; उस शुभाशुभ स्वप्न और उसके फल का वर्णन कवि ने तीन छन्दों में समाप्त कर एक विशद् परिस्थिति, एक विशेष भाव और एक विशेष परिवेश की सर्जना कर दी है । अन्यथा अधिकांश आलोच्य प्रबन्धों में इस पद्धति के स्वप्नवर्णन लम्बे और रूढ़िग्रस्त हैं ।
नगर, कुटिया, मन्दिर आदि कृत्रिम वस्तु-वर्णनों का काव्य में अभाव है । प्रकृति-वर्णन संक्षिप्त हैं और उनका वर्णन एक विशेष पद्धति पर हुआ है । प्रकृति और मानव दोनों एकाकार होकर चले हैं :
१. नेमीश्वर रास, पद्य १३१, पृष्ठ ६ ।
वही, पद्य ८४२ से ८४४, पृष्ठ ४६-५० । ५. सीताचरित, पृष्ठ २। ४. देखिए-पार्श्वपुराण, पद्य ६३ से १२७, पृष्ठ ८५ से ८८ ।