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परिचय और वर्गीकरण
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नेमिचन्द्रिका
यह कवि मनरंगलाल कृत खण्डकाव्य है। इसका रचनाकाल विक्रम संवत् १८८३ है । डॉ० सियाराम तिवारी ने इसका रचनाकाल सन् १८२३ ई०२ तथा काशीनागरी प्रचारिणी सभा के खोज विवरण में सं० १८३० माना है ।
इसमें नेमिनाथ के जन्म से लेकर तप करने तक की घटनाओं का आकलन है । कतिपय विशेषताओं के कारण नेमिनाथ का चरित्र भावुक कवियों के लिए स्वभावतः आकर्षण का केन्द्र रहा है । उनके विवाह की पवित्र वेला में बलिवेदी पर कटने के लिए प्रस्तुत पशुओं का करुण-क्रन्दन अहिंसा और करुणा से भावित उनके कोमल हृदय को एक झटका देता है; उन्हें संसार की निष्ठुरता और अस्थिरता का भान होता है । वे तपश्चर्या का संकल्प लेकर कठोर तप करते हैं । राजुल भी अन्तत: पति के साथ तप का व्रत ले लेती है।
काव्य में यथावसर शृंगार, शांत, वात्सल्य रसों की योजना है। काव्यांत में शान्त रस का उत्कर्ष निदर्शित है ।
इसकी भाषा खड़ी बोली प्रभावित ब्रजभाषा है। भाषा को सजावट के लिए सहज अलंकारों का प्रयोग हुआ है । शैली सरल और मार्मिक है ।
उपर्युक्त काव्यों के अलावा भारामल्ल कृत 'दर्शन कथा तथा 'चारुदत्त चरित्र' मौलिक किन्तु सामान्य प्रबन्धकृतियाँ हैं।
१. जैन सिद्धान्त भवन, आरा (बिहार) से प्राप्त पुस्तक, जो प्रकाशित
अवस्था में है। एक सहस्त्र अरु आठ सतक वरष असिति और।
याही संवत मो करी पूरण इह गुण गौर ॥५६ ॥ -नेमिचन्द्रिका ३. डॉ० सियाराम तिवारी, हिन्दी के मध्यकालीन खण्डकाव्य, पृष्ठ २०२ । ४. खोज विवरण, सभा, १९२६-२८, प्रथम परिशिष्ट, संख्या २६१ ।
प्रकाशक-जैन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय, बम्बई । ६. जैन मन्दिर, पुरानी डीग (भरतपुर), राजस्थान ।