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जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन
बड़ी विशेषता है-भावानुकूल भाषा-शैली का प्रयोग ।' शैली में कवि के व्यक्तित्व की छाप स्पष्ट ही दृष्टिगोचर होती है । प्रोतकर चरित'
इसके रचयिता जोधराज गोदीका हैं। रचनाकाल विक्रम संवत् १७२१ है। इसका प्रणयन ब्रह्मचारी नेमिदत्त के 'प्रीतंकर चरित' के अनुसार हुआ है। १. (क) अधर कपोल लाल सोभित मराल चाल,
__ अति ही रसाल बाल बोलत सुहावनी। नित ही सुरंगी अरघंगी भावने की प्यारी, लोचन कुरंगी सम प्यारे मन भावनी॥
-वही, पद्य ४६४, पृष्ठ ३० । (ख) सोभित नारि महा सुष सागर। मानौ सिषा मधि चंप कली है।
___-वही, पद्य ४६५, पृष्ठ ३० । (ग) जाकी गठड़ी दाम,
सोर बड़ो संसार में, मानौ सच अभिराम, दाम बिना नर चाम सौ ॥
-वही, पद्य ७७३, पृष्ठ ३६ । २. जीवत मात पिता नहिं माने,
तिहि को धर्म अलेषा। मूवा पार्छ मूछ मुड़ाव, गदहा डाके लेषा ॥
-वही, पद्य १७३५, पृष्ठ ८३ । गोधों का जैन मन्दिर, नागौरियों का चौक, घी वालों का रास्ता, जयपुर से प्राप्त हस्तलिखित प्रति । मूलग्रन्थ करता भए नेमिदत्त ब्रह्मचार । तसु अनुसार सु जोध कवि करी चौपई सार ॥
-प्रीतंकर चरित।