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परिचय और वर्गीकरण काव्य का नायक राजकुमार जीवंधर है । उसका जन्म श्मशान भूमि में और उसका पालन-पोषण एक श्रेष्ठि के घर होता है । वह जीवन भर संघर्ष करता है और अनेक विजयों से विभूषित होता है। अन्त में वह प्रतिशोध की भावना से अनुप्राणित होकर अपने पिता का वध करने वाले मंत्री काष्टांगारिक को युद्ध में परास्त कर राज्य-सिंहासन पर आसीन होता है ।
कृति मूलतः दोहा-चौपई छन्द में लिखी गयी है। स्थल-स्थल पर अडिल्ल, सोरठा, चाल, भुजंग प्रयात, वेसरी, छप्पय, बड़दोहा आदि छन्दों का भी प्रयोग हुआ है।
श्रोणिक चरित'
कवि रत्नचन्द ने इस कृति को विक्रम संवत् १८२४ में रचा। यह शुभचन्द्र विरचित श्रेणिक चरित (संस्कृत) का रूपान्तर है।३
श्रेणिक चरित्र २१ प्रभावों का काव्य है। काव्य का लक्ष्य श्रेणिक के आदर्श चरित्र का सर्वांग विवेचन करना है । श्रेणिक भगवान महावीर की समवशरण सभा के प्रधान श्रोता थे।
काव्य शिल्प-विधान की दृष्टि से सामान्य है। अभिव्यंजना में हृदय को रसविभोर करने की शक्ति कम है। विविध छन्दों के प्रयोग की दृष्टि से रचना धनी है।
१. जैन सिद्धान्त भवन, आरा (ग्रंथांक ग, ६१) से प्राप्त हस्तलिखित
प्रति । २. श्रेणिक चरित, पद्य ३२, प्रभाव २१, पृष्ठ ६२ ।
वही, पद्य १८, प्रभाव १, पृष्ठ २।। छप्पय, चाल, ध्र पद, कवित्त, रोला, सवैया, तूर्यमालती, त्रोटक, चंचल, रेषता, चामर, मल्लिका, मालिनी, कवि विसुन्दरी, पंचपेड़ी, विजय अक्षरी, रसावल, कुंडली, नाराच, पद्मावती, द्रुत-विलम्ब, गंगोदक, सुरसाल, अर्द्धभुजंगी, भुजंगप्रयात, बसंततिलका आदि ।