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जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन
धारण करते हुए भी सामान्यतः सफल महाकाव्य है । कवि ने कथा-प्रसंगों के पारस्परिक सम्बन्धों की ओर ध्यान दिया है किन्तु वह परम्परागत रूढ़ियों के मोह से पीछा नहीं छुड़ा सका है, फलतः काव्य के कथानक में पूर्ण संतुलन और कसावट का आविर्भाव नहीं हो सका है।
____ 'पार्श्वपुराण' की अपेक्षा 'नेमीश्वर रास' (नेमिचन्द्र) का कथानक अधिक सशक्त और संतुलित है । उसमें हरिवंश (यादव-वंश) की उत्पत्ति के साथ तीर्थंकर नेमिनाथ के समग्र जीवन का चित्र समाहित है। कथा को ठीक-ठीक विधि से छत्तीस अधिकारों में संजोया गया है । कवि अनावश्यक वस्तु-विस्तार और दीर्घ वर्णनों से बचा है और कथा को समुचित गति देकर उसने उसे सफल ढंग से अवसान तक पहुंचाया है। उसका एक पद्य दूसरे पद्य से और एक प्रसंग दूसरे प्रसंग से ग्रथित है । उसकी प्रासंगिक कथाएँ आधिकारिक कथा को योग देने में सक्षम हैं।
उसमें महत् घटना एक ही है । वैवाहिक वेला में वधू-पक्ष के यहाँ बारात की दावत के लिए वध किये जाने वाले पशु-पक्षियों के करुण क्रन्दन को सुनकर बिना भाँवर पड़े ही नेमिनाथ सारथी को रथ वापिस मोड़ने की आज्ञा दे देते हैं । वे सोचते हैं कि हाय ! एक जीव (स्वयं) के कारण इतने निरपराध जीवों का संहार किया जायेगा। उन्हें सहसा संसार की असारता का भान होता है । अत: वे संसार से वैराग्य लेकर तप द्वारा केवल ज्ञान प्राप्त कर भव्यजनों को उपदेश देते हुए निर्वाण-लाभ करते हैं। इसी एक प्रमुख घटना पर सम्पूर्ण कथा आधृत है। नायक के अभ्युदय हेतु मुख्य घटना को ओर अप्रमुख घटनाएं गतिशील हुई हैं । संक्षेपतः कथा में सम्बन्धनिर्वाह और समन्वित प्रभाव उत्पन्न करने का गुण सन्निहित है । __कवि रामचन्द्र 'बालक' का सीता चरित सम्बन्ध-निर्वाह की दृष्टि से अधिक सफल काव्य है। वह सर्गबद्ध नहीं है, फिर भी उसकी कथा में सर्वत्र बन्ध का गुण समाहित है। उसमें आद्यंत एक पद्य दूसरे पद्य से सम्बद्ध है। उसमें अवान्तर कथाएँ अनेक हैं और वे सभी मुख्य कथा को अग्रसर करती हैं। कहीं-कहीं अवांतर कथाओं की अतिशयता से मूल कथा पीछे भी रह गयी प्रतीत होती है।