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जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन
ऐसा ही एक मार्मिक प्रसंग और लीजिए । वन में कृष्ण जरत्कुमार के बाण से धराशयी ही नहीं हो गये हैं, सदैव के लिए मृत्यु-शया पर सो गये हैं । बलभद्र कृष्ण को सोया हुआ समझते हैं। वे सही स्थिति से अवगत नहीं हैं। वे कृष्ण को 'भाई-भाई' कहकर जगाने, जगकर मुख धोने और जल पीने के लिए कितनी ही बार पुकारते जाते हैं। उनकी समस्त चेष्टाएँ निष्फल रहती हैं, फिर भी उन्हें सन्तोष नहीं होता। वे सोचते हैं-भाई रूठकर सोने का बहाना कर रहा है । अतः वे बोलो ! बोलो !! उठो ! उठो !! दूर से जल लाया हूँ। वीर निद्रा खोलो ! एक बार तो बोलो ! इसी प्रकार वे अनेक वचन बोलते ही चले जाते हैं । न बोलने पर वे कृष्ण को कंधे से लगाकर चल पड़ते हैं। तभी वे देखते है कि कृष्ण के शरीर से बाण लगा हुआ है, रक्त की धारा बह रही है । बस इस लोमहर्षक दृश्य को देखकर वे हाहाकार कर चीख पड़ते हैं । उनका हृदय दुःख से फटने लगता है । वे इतना रोदन करते हैं कि वन के पशु भी अपनी आँखों से अश्रुधारा बहाने लगते हैं।
वस्तुतः यह अत्यन्त कारुणिक और मार्मिक प्रसंग है । बलभद्र द्वारा सम्पन्न क्रिया-व्यापार किस हृदय को शोकाकुल नहीं करते ? यह एक ऐसा स्थल है जिसकी तुलना कदाचित् किसी अन्य स्थल से नहीं की जा सकती। कहना चाहिए कि ऐसे ही रसात्मक स्थल मानव-हृदय की कोमल वृत्तियों को उभारने वाले होते हैं।
'नेमीश्वर रास' की भाँति ही 'सीता चरित' में अनेक मार्मिक स्थलों का विनिवेश है । वास्तव में उसकी कथा-धारा के मध्य इतने मोड़, इतने विराम और इतने मार्मिक स्थल आये हैं कि उन पर प्रकाश डालना कठिन है । उसका आरम्भ ही हृदय को स्पर्श करने वाले प्रसंग से हुआ है। प्रजा के निवेदन पर राम गम्भीरतापूर्वक विचार करने के उपरान्त लोकापवाद के भय से सीता को सेनापति द्वारा घर से निकलवाकर वन में छुड़वा देते हैं । सेनापति भी सीता को वन में अकेली छोड़कर असहाय की भाँति
१. नेमीश्वर रास, पद्य १२२६ से १२३३, पृष्ठ १२३-२४ ।