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जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन
अजन कवियों ने भी । 'जीवन के उल्लासदायक अनेक प्रसंगों में विवाह अत्यन्त आनन्द-मंगल का प्रसंग है । इसलिए कवियों ने इस प्रसंग का वर्णन बड़ी ही सुन्दर शैली में किया है। अन्य कवियों की तुलना में जैन कवियों की मंगल नामान्त कृतियों में भिन्नता लक्षित होती है । 'जानकी मंगल,' 'पार्वती मंगल', 'रुक्मिणी मंगल' आदि काव्य जहाँ शृगारोन्मुख हैं, वहाँ जगतराम का 'लघु मंगल', पाण्डे रूपचन्द का 'लघु मंगल' और 'पंच मंगल', विश्वभूषण का निर्वाण मंगल', विनोदीलाल का 'नेमिनाथमंगल', 'नेमि ब्याह' आदि विरागोन्मुख हैं । चन्द्रिका नामान्त
ये मूलतः चरित्र पर प्रकाश डालने वाली कृतियाँ हैं। जैसे चन्द्रिका धरित्री को आलोकित करती है, वैसे ही ये काव्य चरित्र को आलोकित करते हैं । इस श्रेणी के काव्यों में आसकरण कृत 'नेमिचन्द्रिका' मनरंगलाल कृत 'नेमिचन्द्रिका' आदि उल्लेखनीय हैं।
चौपई-कवित्त नामान्त
जो प्रबन्धकाव्य प्रायः दोहा-चौपई शैली में रचे गये हैं और जिनमें चौपई छन्द की प्रधानता है, उन्हें 'चौपई' काव्य की संज्ञा दी गई है; यथा-'यशोधर चरित चौपई' । इसी प्रकार जो काव्य प्रायः कवित्तों में रचे गये हैं, वे 'कवित्त' नामान्त है; जैसे-'नेमिनाथ के कवित्त', 'पार्श्वनाथ के कवित्त'।
बारहमासा नामान्त
प्रायः 'बारहमासा' काव्य प्रबन्धकाव्य के अन्तर्गत नहीं आते; हाँ वे
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श्री अगरचन्द नाहटा : 'विवाह और मंगल काव्यों की परम्परा,' भारतीय साहित्य, डॉ. विश्वनाथप्रसाद द्वारा सम्पादित, आगरा विश्वविद्यालय, हिन्दी विद्यापीठ, प्रथम अंक, जनवरी १९५६, पृष्ठ १४० ।