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प्रबन्धत्व और कथानक-स्रोत
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प्रतीत होगा। अत: उसमें मार्मिक स्थलों की अवतारणा और सापेक्ष वस्तुवर्णनों की योजना भी होनी चाहिए।
प्रबन्ध के निकष :
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने प्रबन्धकाव्य के लिए तीन निकष स्वीकार किये हैं :
१. सम्बन्ध-निर्वाह, २. कथा के गम्भीर और मार्मिक स्थलों की पहचान और ३. दृश्यों की स्थानगत विशेषता ।
सम्बन्ध-निर्वाह
कोई रचना प्रबन्धकाव्य है या नहीं, यह कहने के लिए हमें सबसे पहले यह देखना होता है कि उसमें कवि ने जिस कथावस्तु को चुना है, उसका निर्वाह वह किस सीमा तक कर पाया है । कथानक चाहे कैसा भी हो, उसमें आद्योपान्त संगति और अन्विति होनी चाहिए। घटना चक्र क्रमबद्ध और उसका उचित निर्वाह प्रबन्धकाव्य में अपेक्षित होता है । हाँ, घटनाओं की संयोजना में प्रबन्धकार एक सीमा तक स्वतंत्र होता है। यह सब उसकी दृष्टि पर निर्भर है कि वह किस घटना को कितना संकोच देता है और कितना विस्तार; वह किस घटना को इतिवृत्तरूप में चित्रित कर यों ही आगे बढ़ जाना चाहता है या थोड़ा विराम देकर हृदय को रमाने वाले रमणशील स्थलों की सृष्टि और तद्नुकूल वस्तु-व्यापार-चित्रण करना चाहता है।
'प्रबन्धकाव्य में बड़ी भारी बात है सम्बन्ध निर्वाह' ।' यहाँ 'सम्बन्धनिर्वाह' से अभिप्राय है 'कथा-निर्वाह' । प्रबन्धकाव्य तटिनी की भाँति अपने
.. पं० रामचन्द्र शुक्ल : हिन्दी साहित्य का इतिहास, पृष्ठ १६४ । २. पं० रामचन्द्र शुक्ल : जायसी-ग्रन्थावली, भूमिका, पृष्ठ ७२ ।