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जैन कवियों के ब्रजभाषा प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन
(२) व्रत कथाओं आदि के आधार पर रचित खण्डकाव्य, यथा'बंकचोर की कथा', 'निशिभोजन त्याग कथा', 'शीलकथा' आदि ।
(३) दार्शनिक या आध्यात्मिक भित्ति पर प्रणीत खण्डकाव्य, यथा'शतअष्टोत्तरी', 'चेतन कर्म चरित्र', 'मधुबिन्दुक चौपई' आदि ।
पच्चीसी', 'सुआ बत्तीसी',
. (४) भक्तिविषयक, यथा- - ' फुलमाल 'जिनजी की रसोई' आदि ।
(५) विविध - पंचेन्द्रिय-संवाद', 'नेमि- राजुल बारहमासा संवाद' आदि ।
निष्कर्ष
इस प्रकार विवेच्य कृतियों के परिचय और वर्गीकरण के उपरान्त हम इस निष्कर्ष पर आते हैं कि हमारे युग में जैन कवियों द्वारा ब्रजभाषा में मौलिक और अनूदित, दोनों प्रकार के प्रबन्धकाव्य रचे गये । इनमें से अधिकांश चरितात्मक काव्य हैं । इनके नामकरण में विविधता दिखायी देती है । विषय की दृष्टि से इनमें कुछ ऐतिहासिक या पौराणिक हैं, कुछ दार्शनिक या आध्यात्मिक और कुछ धार्मिक या नैतिक । इनमें महाकाव्य, एकार्थकाव्य और खण्डकाव्य, तीनों शामिल हैं ।