________________
परिचय और वर्गीकरण
१०१ काव्यों में प्रायः प्रेम, वीरता और धर्म या वैराग्य भावना का समन्वय दिखलाई पड़ता है।
प्राचीनकाल से ही कतिपय चरित जैनों में विशेष लोकप्रिय रहे हैं। इन चरित नामान्त काव्यों में अधिकांशत: जैनों के त्रिषष्ठि शलाका पुरुषों (२४ तीर्थंकर, १२ चक्रवर्ती, ह नारायण, ६ प्रतिनारायण, ६ बलभद्र) का चरित्र वर्णित है । इस श्रेणी के कतिपय प्रबन्धकाव्यों में इतिहास प्रसिद्ध राजाओं, वीर पुरुषों, आचार्यों एवं महात्माओं का भी जीवन-वृत्त है।
आलोच्ययुगीन चरित नामान्त काव्य परम्परागत हैं और उनके कथानक स्रोत पूर्ववर्ती जैनागमों, पुराणों अथवा प्रबन्धकाव्यों से ग्रहण किये गये हैं। उनमें रोमांचक तत्त्वों के विनिवेश के साथ ही धार्मिकता का आग्रह है। उनका प्रमुख लक्ष्य चरित-नायक के चरित्र का पूर्ण विकास निदर्शित करना है । उन में संघर्षात्मक परिस्थितियों, चमत्कारपूर्ण घटनाओं, अलौकिक एवं अतिमानवीय तत्त्वों एवं उपदेशात्मक स्थलों की प्रधानता उपलब्ध होती है। नायक का अनवरत संघर्ष उनका प्राण-बिन्दु है । उनमें शृङ्गार, वीर और शान्त रस की त्रिवेणी प्रवाहित है।
चरित नामान्त रचनाओं में 'यशोधर चरित', 'श्रेणिक चरित' आदिआदि अनेक कलाकृतियों का नाम लिया जा सकता है ।
पुराण नामान्त
'पुरातन पुरुषों के चरित के लिए दिगम्बर सम्प्रदाय में पुराण एवं चरित ये दो शब्द बराबर प्रयुक्त हुए हैं, जबकि श्वेताम्बर साहित्य में केवल चरित शब्द ही । चरित शब्द एक विस्तृत अर्थ वाला है, जबकि पुराण शब्द से अभिप्रेत है पुरातन पुरुषों का चरित । विद्वानों के लिए जो वेद का स्थान है, जनता के लिए वही पुराणों का है।""पुराण का अभिधार्थ 'प्राचीन' १. दे०-हिन्दी साहित्य कोश, पृष्ठ २८६-८७ ! २. ५० गुलाबचन्द्र : प्रस्तावना, पुराणसार संग्रह, पृष्ठ ४ ।