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परिचय और वर्गीकरण प्रस्तुत कृति में प्रीतंकर का चरित्र वर्णित है । रचना सामान्य कोटि की है। भाषा-शैली में भी कोई विशेषता लक्षित नहीं होती। छन्दों में चौपई छन्द की प्रधानता है। पाण्डव पुराण'
बुलाकीदास ने १७५४ विक्रम संवत् में इसकी रचना की, जिसका आधार पंचास्तिकाय है । यह एक सर्गबद्ध रचना है । अलंकारमयी भाषा और स्वच्छ शैली में भावों की सुमधुर व्यंजना की दृष्टि से काव्य सुन्दर है ।। इतिवृत्तात्मक एवं रसात्मक वर्णनों में सामंजस्य है।
कृति में पाण्डवों का संघर्ष प्रधान है। द्रोपदी का दुर्धर्ष संघर्ष और असंख्य वेदनाओं का संसार तो और भी द्रवणशील है। द्यूत क्रीड़ा कितनी भयावह है और कितनी विपत्तियों का कारण, काव्य में इसी लक्ष्य का संधान है।
प्रस्तुत प्रबन्धकाव्य में महाकाव्य की विशेषताएँ विद्यमान हैं । लब्धि विधान व्रत कथा
प्रस्तुत काव्य का नाम यद्यपि 'लब्धि विधान व्रत कथा' है, किन्तु यह
जैन सिद्धान्त भवन, आरा से प्राप्त हस्तलिखित प्रति (ग्रन्थांक ग-४०) । २. पाण्डव पुराण, पद्य ३६, प्रभाव १, पृष्ठ ३ । ३. (क) हस्त-हस्त पग-पग भिरत, सीस-सीस सों मार । अघरे जुवै लोचन अरुन, स्वेद दिपत तन सार ॥ .
- वही, पद्य ६६, प्रभाव १८, पृष्ठ १७५ । (ख) द्रुम हालत पर भीम जु हलै । सरित छुवत जिम जलनिधि चले।
-वही, पद्य ४५, प्रभाव ११, पृष्ठ ६६ । क्षुल्लक श्री शीतलसागर जी महाराज द्वारा सम्पादित और हुकमचन्द, लालचन्द जैन सांगानेर (जयपुर) द्वारा वीर संवत् २४६२ में प्रकाशित, जिसका नाम 'गौतम गणधर' चरित्र भी दिया गया है ।