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परिचय और वर्गीकरण इस समय के अनूदित काव्यों में महाकाव्यं, एकार्थकाव्य और खण्डकाव्य, तीनों ही उपलब्ध होते हैं ।
धर्म परीक्षा
यह एक धार्मिक काव्य है । इसकी रचना कवि मनोहरदास खण्डेलवाल ने विक्रम संवत् १७०५ में की। इसका कथानक मूलतः संस्कृत भाषा में मुनि मतिसागर विरचित 'धर्म-परीक्षा' के आधार पर है।
प्रस्तुत प्रबन्धकाव्य में मनोवेग और पवनवेग, दो मित्रों की कहानी अंकित है। कथा में गति और प्रवाह का अभाव है। कथानक अनेक स्थलों पर उलझा हुआ प्रतीत होता है।
वस्तुतः यह एक व्यंग्यात्मक काव्य है, जिसमें स्थल-स्थल पर कवि ने लाक्षणिक शैली का सहारा लिया है । यह नीतियों का भण्डार है।'
भाषा-शैली प्रौढ़, सशक्त एवं प्रभावोत्पादक है। इस कृति की सबसे श्री दिगम्बर जैन मन्दिर, चौराहा बेलनगंज, आगरा से प्राप्त हस्तलिखित प्रति । धर्म परीक्षा, पद्य ८, पृष्ठ १ । मति सागर मुनि जान, संस्कृत पूर्वहि कही। मैं बुद्धिहीन अयान, भाषा कीनी जोरि के ॥
-वही, पद्य २०२१, पृष्ठ ६७ । ५. (क) लोभ षवीस निवारि, लोभ मारि संतोष सुभ । आतम सकति सम्हारि, मारौ तृसना राष सी ॥
-धर्म परीक्षा, पद्य १८४७, पृष्ठ ६४ । (ख) धिक प्रीति ससि सूर की, मिल मास मधि आइ । चन्द्र प्रताप मिटाइ कैं, आप प्रताप कराइ ॥
-वही, पद्य २४२, पृष्ठ १३ । (ग) अपनों छिद्र पहार सम, ताहि ढके सब कोइ । सरसों सम पर छिद्र है, ताकौ देष लोइ ॥
-वही, पद्य १३०५, पृष्ठ ६२ ।