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जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन
ब्रजभाषा खड़ी बोली से सम्पुटित रही है। अनेक स्थलों पर दार्शनिक पक्ष की प्रबलता के कारण भाषा प्रायः दुरुह हो गई है।
मधु बिन्दुक चौपई
इस काव्य का प्रणयन भैया भगवतीदास ने विक्रम संवत् १७४० में किया। आध्यात्मिक रूपक काव्यों की परम्परा में इसका उचित स्थान है। इसमें विषयासक्त जीव को अनन्त कष्टों में गुजरते हुए रूप में निरूपित करते हुए विषयादि से विमुक्ति का संदेश दिया गया है।
प्रबन्ध की कथा अत्यन्त सरस और प्रसादगुण-सम्पन्न है। युक्तियों में चटुलता और अभिव्यक्ति में प्रभविष्णुता है । कुतूहल को निरन्तर अग्रसर होने का अवसर दिया है। पाठक अन्त में ही कुतूहल की स्थिति से मुक्त होता है।
काव्य की भाषा सुबोध और सरल है । वह दोहा-चौपई छन्द में लिखा गया मनोरम काव्य है । नेमिनाथ मंगल
यह एक भावात्मक प्रबन्धकाव्य है, जिसकी रचना कवि विनोदीलाल
१. तब जीव कहै सुनिये सुज्ञान । तुम लायक नहीं यह सयान ॥ वह मिथ्यापुर को है नरेश । जिहं घेरे अपने सकल देश ।।
-चेतन कर्म चरित्र, पद्य ६६६, पृष्ठ ६२ । २. ब्रह्मविलास में (पृष्ठ १३५-१४०) संकलित । ३. मधु बिन्दुक चौपई, पद्य ५६, पृष्ठ १४० । १. विषय सुखन के मगन सों, ये दुख होहिं अपार । तातें विषय विहंडिये, मन वच क्रम निरधार ।।
-मधु बिन्दुक चौपई, पद्य ५६, पृष्ठ १४० । ५. काशी नागरी प्रचारिणी सभा, काशी (ग्रंथांक १८६८, १२२६) से
प्राप्त हस्तलिखित प्रति ।