________________
जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन
प्रस्तुत काव्य में नेमिनाथ और राजुल का शीलांकन बड़ी सुन्दरता से हुआ है। राजुल के चरित्र में मानसिक घात-प्रतिघातों का व्यंजक प्रदशन है। प्रिय-पथ में चलते-चलते उसका हृदय करुणा से भीग गया है।'
'नेमिचन्द्रिका' का कथात्मक संघटन एवं शिल्प-सौन्दर्य बड़ा भव्य बन पड़ा है । सम्पूर्ण काव्य रसात्मक स्थलों से परिपूर्ण है । उसकी भावात्मकता मुग्धकारी है।
___काव्य में गीति-तत्त्वों की प्रचुरता है । उसमें कतिपय ढालों के अतिरिक्त दोहा, चौपई, छप्पय, सवैया, गीता. गीतिका आदि छन्दों का प्रयोग हुआ है।
नेमीश्वर रास
आलोच्यकाल में जैन कवियों द्वारा रचित 'रास-रासो' नामान्त अनेक रचनाएँ मिलती हैं। उनमें अधिकांश राजस्थानी और गुजराती भाषा में लिखी गई हैं और थोड़ी ब्रजभाषा में भी । उनमें सबसे बड़ी विशेषता जो उपलब्ध होती है, वह है उनकी गेयता। वे प्राय: ढालों और देशियों में रचित हैं।
कवि नेमिचन्द कृत 'नेमीश्वर रास' रास-परम्परा का एक महत्त्वपूर्ण प्रबन्धकाव्य है। यद्यपि प्रस्तुत कृति के अतिरिक्त कृतिकार की अन्य कृतियों के बारे में कोई सूचना नहीं मिलती, किन्तु यही एक ऐसी रचना है
" ए उठि चाली है राजकुमारि, पिया पथ गहि लियो हो। ए जी एक धर्म सहाय, तो साहस करि हियो हो । चली जात मारग में सोय, पंथ अकेली मिलो न कोय । पिया पिया तहां करति विलाप, कहा कंथ मैं कीनो पाप ॥ काहे कंथ दुख मोको दियो, कौने मेरो सुख हरि लियो । जन नहिं पावहि उत्तर देहि, दीरघ स्वांस उस्वांस जु लेहि ॥
-नेमिचन्द्रिका, पृष्ठ २६-३० । २. जैन साहित्य शोध-संस्थान, महावीर भवन, चौड़ा रास्ता, जयपुर से
प्राप्त हस्तलिखित प्रति ।