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परिचय और वर्गीकरण
उसमें नेमिनाथ की धर्मप्रिया राजुल को नायकत्व प्रदान कर नारी चरित्र का उत्कर्ष अभिव्यंजित है । सुकुमारी राजुल अपने पति की चिरसंगिनी बनकर पार्वत्य प्रदेश में कठोर तपश्चर्या में लीन रहती हुई अपना सारा जीवन बिता देती है । उसका लौकिक विवाह अलौकिक विवाह में बदलकर भौतिक सुख-त्याग की पराकाष्ठा को व्यक्त करता है ।
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सम्पूर्ण काव्य गेय शैली में रचित है । उसमें भावानुभूतियों की तीव्रता और सघनता, शैली की सरसता और गम्भीरता तथा संवादों की भव्यता और मोहकता अथ से इति तक विद्यमान है । वस्तुतः यह काव्य कलेवर की लघुता में भी निराला है ।
सूआ बत्तीसी'
यह भैया भगवतीदास रचित (विक्रम संवत् १७५३) २ एक छोटा-सा खण्डकाव्य है । यह आध्यात्मिक रूपक है, जिसमें आत्मा को सूआ के रूप में चित्रित किया गया है ।
काव्य से स्पष्ट है कि संसार में शिष्य के लिए गुरु ही प्रकाशस्तंभ है । गुरु प्रदत्त मंत्रोपदेश के प्रतिकूल आचरण करने पर मानव अगणित कष्ट सहता है और फिर गुरु-संदेश के पुनस्मरण से वह बड़ी दुर्गति से बच सकता है ।
प्रस्तुत काव्य दोहा-चौपई छन्द में रचा गया है । भाषा में सहज प्रवाह है । उसमें प्रांजलता और सुकुमारता का प्रचुर विनिवेश है ।
नेमिचन्द्रिका' (आसकरण कृत)
यह कवि आसकरण कृत एक सुन्दर कृति है । उस पर रचनाकाल विक्रम संवत् १७६१ अंकित है ।
१.
ब्रह्मविलास में (पृष्ठ २६७ से २७० ) संगृहीत ।
२. सूआ बत्तीसी, पद्य ३४, पृष्ठ २७० ॥
*. काशी निवासी बद्रीप्रसाद जैन ने ईस्वी सन् १९०६ में चन्द्रप्रभा प्रेस में
छपवाया । प्राप्ति-स्थान - बद्रीप्रसाद जैन पुस्तकालय, बनारस सिटी ।
४. नेमिचन्द्रिका, पृष्ठ ३२ ।