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परिचय और वर्गीकरण
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जिसने कवि को प्रभूत गौरव प्रदान किया है। इस काव्य में कवि ने एक ऐसे चरितनायक को अपने काव्य का विषय बनाया है, जिसका जीवन अनेक विशेषताओं और महानताओं से युक्त है । वस्तुत: नेमिनाथ के जीवन की प्रत्येक घटना प्रत्येक सहृदय कवि को काव्य-सर्जन के लिए प्रेरित और आकर्षित करती है। ____ इसकी रचना विक्रम संवत् १७६६ में हुई। यह ३६ अधिकारों में पूर्ण है । इसमें २१ अधिकारों में हरिवंश की उत्पत्ति का वर्णन है और शेष अधिकारों में नेमिनाथ के जन्म से लेकर निर्वाण तक की घटनाएं निबद्ध हैं। ___ इसमें आरम्भ से अन्त तक अधिकांश पंक्तियों के अन्तिम चरण का अन्तिम अक्षर 'तो' है और प्रत्येक दो पंक्तियों के उपरान्त प्रायः 'रास भणौं श्री नेमिको' की भावभीनी टेक (आवृति) है। इससे समग्र काव्य की गेयता प्रमाणित होती है। भावाभिव्यक्ति में सरसता और प्रभविष्णुता है। शैली अभिनव और भाषा ढूढारी प्रभावित ब्रजभाषा है।
रचना उच्च साहित्यिक स्तर की है। यह कवि की सूक्ष्म अन्तर्दृष्टि एवं मौलिक चिन्तना शक्ति की परिचायिका है। यशोधर चरित
पं० लक्ष्मीदास ने 'जीव दया" की भावना से अनुप्राणित होकर प्रस्तुत प्रबन्धकाव्य की रचना संवत् १७८१ में की।
१. सतरासे गुणत्तरै सुदि आसोज दस रवि जाणि तौ।
-नेमीश्वर रास, पद्य १३०१, पृष्ठ ७६ । २. दूध चल्यो जब आंचला, जाणि कठोर कलस अपार तौ।। आनंद के आँसू झरे, आपस में पूछे सब सार तौ ॥ रास भणौं० ॥
-नेमीश्वर रास, पद्य १७८, पृष्ठ १२ । ३. इसकी हस्तलिखित प्रति जैन साहित्य शोध-संस्थान, जयपुर के
संग्रहालय में सुरक्षित है। ४. जीव दया के कारणे चरित्र सु कीन्ह । -यशोधर चरित, पद्य ८६३ । संवत् सतरा सै भले, अरु ऊपर इक्यासी ।
-यशोधर चरित, प्रशस्ति, पद्य ८६३ ।