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युग-मीमांसा
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प्रमुख काव्यधाराएँ
आलोच्य युग अपनी साहित्यिक नवीनताओं के लिए ही प्रशस्त नहीं है, वरन् उसमें परम्पराएँ भी समाहत हुई हैं। पूर्ववर्ती काव्य तथा परम्परित काव्यगत धाराओं से उसने बहुत कुछ ग्रहण किया है, किन्तु नये परिवेश में । उसमें झलकता हुआ नव्यता का परिपार्श्व युगीन परिस्थितियों के अनुसार है । यह युग काव्य की समृद्धि का युग है, जिसकी अनेक धाराएँ हैं।
इस काल में मुक्तक भी रचे गये और प्रबन्ध भी, किन्तु प्रधानता मुक्तक की ही रही । रीतिबद्ध काव्य और शृंगार काव्य प्रचुर परिमाण में सिरजा गया । रीतिमुक्त काव्य और वीर-काव्य का भी सृजन हुआ । भक्तिपरक रचनाएँ भी सामने आयीं और नीतिपरक रचनाएँ भी। प्रेमाख्यानक काव्यों का भी प्रणयन हुआ और स्वच्छन्द काव्यों का भी । मौलिक काव्य के साथ-साथ अनूदित काव्य का भी पर्याप्त मात्रा में प्रणयन हुआ । कलात्मक चमत्कार और भाषागत सौष्ठव इस काल की विशेषता रही । इस समय के काव्य की प्रमुख धाराएँ द्रष्टव्य हैं :
मुक्तककाव्य धारा
यह काल मुक्तक काव्य-रचना का काल है। इस काल का उत्कृष्टतम काव्य मुक्तक काव्य-शैली में ही प्रणीत हुआ और स्फुट मुक्तक छन्दों के प्रणयन में ही इस युग की विशेषता समाहित रही । तत्कालीन कविता राज-दरबारों में ही विशेषत: पल्लवित हुई। 'दरबार में जो रचनाएँ सुनायी जाती हैं, उनके लिए कथाबद्ध प्रबन्धों से काम नहीं चलता । थोड़े समय के लिए जो रचना रस-मग्न करने वाली हो, वही वहाँ काम की हो सकती है, उसका मुक्तक होना बहुत आवश्यक होता है।" आश्रयदाताओं और राज-दरबार के काव्य-रसिकों के पास प्रबन्ध के इतिवृत्तात्मक वर्णनों को पढ़ने-सुनने के लिए धैर्य और अवकाश ही कहाँ था ? १. विश्वनाथप्रसाद मिश्र : बिहारी की वाग्विभूति, पृष्ठ १५ ।