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जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन
अनन्त भाव-राशि हिन्दी में उतरकर प्रकाश में आई, जिससे इस भाषा के गौरव में वृद्धि हुई।
निष्कर्ष
इस प्रकार समग्र युग पर दृष्टिपात करने से यह विदित होता है कि यह काल प्रायः उथल-पुथल, अशान्ति और अराजकता का काल था । जनजीवन संकटग्रस्त था । जन-सामान्य की सुख-सुविधा छिन गई थी। मध्यमवर्ग भी चैन की साँस नहीं ले रहा था। शासक वर्ग अलस निद्रा में अंगड़ाई ले रहा था। धर्म का स्वरूप परिवर्तित हो चला था। __ आलोच्यकाल की कठोरता में भी कला और साहित्य का सृजन होता रहा । अधिकांश कलाकार राज्याश्रित थे, अत: उनका हृदय राष्ट्रीयता अथवा समाजोत्थान की भावना से अभिभूत न था। जो कवि सर्वथा बन्धनमुक्त थे, उनका साहित्य अधिक उत्कृष्ट बन पड़ा है। उनके काव्य में जीवन के प्रति उदात्त दृष्टिकोण का विनिवेश है।
इस युग में मुक्तकों का क्षेत्र विस्तृत रहा, प्रबन्धों का सीमित । जहाँ तक उपादेयता का प्रश्न है, वह दोनों की समान है।