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युग-मीमांसा
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जो हो, इस युग के कवियों की लम्बी-चौड़ी सूची है । इनमें से कुछ कवि हैं, कुछ आचार्य और कुछ कवि और आचार्य दोनों ही । अध्ययन की सरलता के लिए इन कवियों का श्रेणी विभाजन भी हुआ है । चिन्तामणि, मतिराम, देव, जसवन्तसिंह, कुलपतिमिश्र, श्रीपति, सोमनाथ, प्रतापसाहि आदिकवि रीतिबद्ध कवि हैं । इन्होंने अपने लक्षणग्रन्थों में काव्य-शास्त्र के सभी अंगों पर प्रकाश डाला है। रीतिसिद्ध कवियों में बिहारी और रसनिधि का नाम शीर्ष पर है । ये ललित काव्य के प्रणेता रस-सिद्ध कवीश्वर कहलाते हैं । ये रीति की कठोर परम्परा में बंधे नहीं रहे । कोमल कल्पनाओं और मंजुल भावनाओं का व्यापक प्रसार इनके काव्य में प्रतिबिम्बित है ।
तीसरे प्रकार के कवि रीति-मुक्त थे । रीति का परम्परागत बन्धन इन्हें स्वीकार्य न था । ‘ये हृदय के फैलाव के लिए और चौड़ी भूमि चाहते थे ।............ये प्रेम की अभिव्यक्ति के लिए हृदय का पूर्ण योग संघटित करने के अभिलाषुक थे ।"" "राजशेखर ने ऐसे कवियों को काव्य - कवि कहा है ।............ये शृंगार या प्रेम के उन्मुक्त गायक थे । आलम, घना - नन्द, ठाकुर और बोधा ऐसे ही कवि थे ।" इन कवियों का रीतिमुक्त काव्य अर्थ-विस्तार, भाव-गांभीर्य तीव्रानुभूति, कोमल कल्पनाओं, मर्मस्पर्शी उद्भावनाओं एवं शिल्प-विधान आदि सभी दृष्टियों से अत्युत्कृष्ट है । इस युग के सैकड़ों जैन कवियों का विशाल काव्य भी रीतिमुक्त काव्य के अन्तर्गत आता है, अन्तर केवल इतना है कि जैन कवि उन्मुक्त प्रेम के गायक न थे— शील, भक्ति और अध्यात्म के पुरस्कर्ता थे । इस क्षेत्र में भूधरदास, भैया भगवतीदास, आनन्दघन, विनोदीलाल, लक्ष्मीदासं, पाण्डे लालचन्द, दौलतराम, किशनसिंह, रामचन्द्र 'बालक', लालचन्द लब्धोदय, जिनहर्ष, जिनरंग सूरि आदि-आदि कवि इसी कोटि के थे । अधिकांश वीर रस के कवि भी उपर्युक्त श्र ेणी के अन्तर्गत आते हैं । इस परम्परा के कवियों में भूषण, सुखदेव मिश्र, बैनी प्रवीन, प्रतापसाहि, श्रीधर, लाल, जोधराज, गुमान मिश्र, सूदन, चन्द्रशेखर आदि के नाम उल्लेखनीय हैं ।
विश्वनाथप्रसाद मिश्र : बिहारी की वाग्विभूति, पृष्ठ ३ ।
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