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जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन
और न रुकेगा। यदि उसके प्रवाह के लिए समतल भूमि न भी मिले तो वह ऊबड़-खाबड़ भूमि में भी अपनी राह आप खोज लेती है। देश-काल की परिस्थितियाँ उसे प्रभावित अवश्य करती हैं किन्तु उसके विकास में गतिरोध उत्पन्न नहीं कर सकतीं, केवल उसका रूप परिवर्तन कर सकती हैं। इसी प्रकार हम देखते हैं कि आलोच्य युग में विविध कलाओं ने अपना रूप सँवारा है, इस तथ्य की पुष्टि इतिहास से होती है । तत्सम्बन्धी संक्षिप्त विवेचन द्रष्टव्य है।
स्थापत्य कला
मुगलकाल में स्थापत्य कला की विशेष उन्नति हुई और शाहजहाँ इस कला का सम्राट् कहलाया। वह एक महत्त्वाकांक्षी एवं कलानुरागी व्यक्ति था। उसकी सौन्दर्योपासना में जीवन को रससिक्त कर उसे देवोपम रमणीयता प्रदान करने की क्षमता थी।
उसने आगरा, दिल्ली, लाहौर, काश्मीर, अजमेर, अहमदाबाद आदि स्थानों पर भव्य इमारतों का निर्माण कराया। दिल्ली में उसके द्वारा निर्मित दीवाने आम, दीवाने खास' और मोती मस्जिद सुन्दर स्थापत्य कला के जीते-जागते नमूने हैं। ताज जैसी अद्वितीय कलाकृति के निर्माण १. "अगर फिरदौस बर रुए जमी जस्त । हमीं अस्तौ हमीं अस्तौ हमीं अस्त ॥"
आज भी दीवाने खास की दीवार पर अंकित उपयुक्त पंक्तियों का आशय है-यदि भूतल पर कहीं आनन्द का स्वर्ग है, तो यही है, यही है, यही है। निःसन्देह आगरे का ताज संसार की सबसे शानदार और सबसे सुन्दर इमारत है। भारतीय निर्माण-कला पर वह झूमर का काम देता है । देश की इस पतितावस्था में भी वह हर भारतवासी के सच्चे अभिमान और गौरव का पात्र है और शिल्प के मैदान में इस्लाम से पहले के भारतीय आदर्शों और बाद के मुस्लिम आदों, दोनों के प्रेमालिंगन का नमूना है। -सुन्दरलाल : भारत में अंग्रेजी राज (प्रथम खण्ड), पृष्ठ ७३-७४ ।