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युग-मीमांसा
नीय हैं। उसके दरबार में रामदास और महापात्र दो प्रधान गायक थे। कहा जाता है कि 'सम्राट् अपने संस्कृत राजकवि जगन्नाथ के गाने से इतना प्रसन्न हुआ था कि उसने उसे इनाम में उसके बराबर सोना तोलकर दिया था।
औरंगजेब के शासनकाल में अन्य ललित कलाओं के साथ ही संगीत कला का भी ह्रास हुआ। यद्यपि 'अपने शासन के प्रारम्भिक दस वर्षों में वह भी अपने पूर्वाधिकारियों के समान अच्छे-अच्छे गायकों के गाने सुना करता था और संगीत कला को राजकीय संरक्षण प्रदान किया करता था; किन्तु ज्यों-ज्यों उसकी आयु बढ़ती गयी, त्यों-त्यों वह संयमी तथा विरक्त होता गया। उसने गाना सुनना छोड़ दिया और सभी दरबारी गायकों को दरबार से निकाल दिया । निराश संगीतज्ञ राजकीय संरक्षण के अभाव में चित्रकारों के समान ही प्रान्तीय राजाओं, नवाबों एवं अन्य श्रीमन्तों के आश्रय में चले गये । वृक्ष की डाली काट दिये जाने पर पक्षियों ने अपना दूसरा आश्रय-स्थल खोज लिया । 'मुगल सम्राट औरंगजेब के पश्चात् मोहम्मदशाह रंगीले ने संगीत को प्रोत्साहित कर उसे जीवनदान दिया। उसके काल में श्रीविहीन मुगल-दरबार अदारंग और सदारंग के 'ख्यालों से गुंजित हो उठा । इसके अतिरिक्त शोरी मियाँ ने भी 'ठप्पा' गायन का प्रचार किया जिसकी विशिष्टता कण्ठ से दानेदार स्वर निकलना है । इसी समय हिन्दू और ईरानी शैलियों के सम्मिश्रण से और भी नवीन, सुमधुर, सरस शैलियों व ध्वनियों का निर्माण हुआ। ... श्रीनिवास ने संगीत पर 'राग तत्त्व नवबोध' नामक ग्रन्थ की रचना की। ..."दक्षिण के सुलतान भी संगीतज्ञों की एक सेनासी रखते थे । गोलकुण्डा में तो बीस हजार संगीतज्ञ माने जाते थे। इसके अतिरिक्त समस्त हिन्दू राज-सभाओं में संगीत जीवन का एक आवश्यक
.. बी० एन० लूनिया : भारतीय सभ्यता और संस्कृति का विकास, पृष्ठ
४१६ । २. डॉ० आशीर्वादीलाल : मुगलकालीन भारत, पृष्ठ ५८६ । ३. वही, पृष्ठ ५८६-५६० ।