________________
४८
जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन
प्रतिदंत सरोवर एक बीस । सरसरहं कमलिनी सौ पचीस ॥ एकैक कमलिनी प्रति महान । पच्चीस मनोहर कमल ठान । प्रति कमल एक सौ आठ पत्र । सोभा वरनी नहिं जाय तत्र ॥ पत्रन पर नाचें देव नारि । जग मोहत जिनकी छबि निहारि ॥
मांगलिक पर्वोत्सवों पर घर-घर में चित्र रचे जाते थे। इन चित्रों में लोक-हृदय झाँकता था । वैवाहिक अवसरों पर दुलह-दुलहिन के हाथों पर मेंहदी से विचित्र-विचित्र चित्र उतारे जाते थे ।'
संगीत कला
निस्संदेह अकबर महान् के युग में संगीत कला का जितना विकास हुआ, उतना आलोच्य युग में नहीं हुआ; फिर भी इस काल में इस कला का प्रचुर विकास हुआ दृष्टिगत होता है। शाहजहाँ संगीत और गान-विद्या का मर्मज्ञ, रसिक और प्रेमी था । वह गाने-बजाने का शौकीन ही न था, स्वयं सरस गीतों का रचयिता भी था। उसका स्वर इतना कोमल और मधुर था कि 'अनेक शुद्धात्मा सूफी फकीर तथा संसार से संन्यास लेने वाले साधु-संत भी उसका गाना सुनकर सुध-बुध विसार देते थे और परमानन्द में लीन हो जाते थे। वह कलावन्तों का सबसे बड़ा संरक्षक था । 'मुसलमान संगीतज्ञों के साथ-साथ उसने हिन्दू संगीतज्ञों को भी राज्याश्रय दिया था। प्रमुख हिन्दू संगीतज्ञों में जगन्नाथ और बीकानेर के जनार्दन भट्ट विशेष उल्लेख
१. पार्श्व पुराण, पद्य २१-२३, पृष्ठ ६६ । २. नेमिनाथ मंगल, पृष्ठ २-३ । ३. सरकार : स्टडीज इन मुगल इंडिया, पृष्ठ १२-१३ ।