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शिवकोटि१३९ रविषेण१४० जटासिंहनन्दी१४१ जिनसेन'४२ पद्मनन्दी१४३ देवसेन१४४ अमृतचन्द्र१४५ आदि ने श्रावकों के व्रतों के सम्बन्ध में अवश्य लिखा है, पर प्रतिमाओं के सम्बन्ध में ये मौन रहे हैं। दूसरी परम्परा ऐसे आचार्यों की है जिन्होंने केवल प्रतिमाओं का उल्लेख ही नहीं किया है किन्तु उनके स्वरूप का विस्तार से विवेचन भी किया है। उनमें आचार्य समन्तभद्र १४६ सोमदेव'४७ अमितगति१४८ वसुनन्दी१४९ पण्डित आशाधर ५० मेधावी५१ सकलकीर्ति१५२ आदि के नाम लिए जा सकते हैं।
जिस श्रावक को नवतत्त्व की अच्छी तरह से जानकारी हो, वह प्रतिमा धारण कर सकता है। नवतत्त्व की बिना जानकारी के प्रतिमाओं का सही पालन नहीं हो सकता। कितने ही विचारकों का यह अभिमत है कि प्रथम प्रतिमा में एक दिन उपवास और दूसरे दिन पारणा, द्वितीय प्रतिमा में बेले-बेले पारणा इसी तरह तेले-तेले, चोले-चोले से लेकर ग्यारह तक तप कर पारणा किया जाये। पर उन विचारकों का कथन किसी आगम और परवर्ती ग्रन्थों से प्रमाणित नहीं है। उपासकदशांग सूत्र में आनन्द आदि श्रावकों ने प्रतिमाओं के आराधन के समय तप अवश्य किया था। पर इतना ही तप करना चाहिए, इसका स्पष्ट निर्देश नहीं है। कितने ही विचारक यह भी मानते हैं कि वर्तमान में कोई भी श्रावक प्रतिमाओं की आराधना नहीं कर सकता। जैसे भिक्षु प्रतिमाओं का विच्छेद हो गया वैसे ही श्रावक प्रतिमाओं का विच्छेद हो गया है। उन विचारकों की बात चिन्तनीय है। प्रतिमाओं के साथ अनशन तप की अनिवार्य शर्त ही सम्भवतः इस विचार का आधार हो। दिगम्बर परम्परा के अनुसार श्रावक-प्रतिमाओं का पालन यावज्जीवन किया जाता है, श्वेताम्बर परम्परा में उनकी कालमर्यादा एक, दो यावत् ग्यारह मास की नियत है। दिगम्बर परम्परा में आज भी प्रतिमाधारी श्रावक हैं।
इस तरह ग्यारहवें समवाय में विविध-विषयों पर विचार प्रस्तुत किए गये हैं। . बारहवां समवाय : एक विश्लेषण
- बारहवें समवाय में बारह भिक्षु प्रतिमाएँ, बारह संभोग, कृतिकर्म के बारह आवर्त, विजया राजधानी का बारह लाख योजन का आयाम विष्कम्भ बताया गया है। मर्यादापुरुषोत्तम राम की उम्र बारह सौ वर्ष की बतायी है। रात्रिमान तथा सर्वार्थसिद्ध विमान से बारह योजन ऊपर ईषत्प्राग्भारपृथ्वी तथा नारको और देवों की बारह पल्योपम व बारह १३९. रत्नमाला १४०. पद्मचरित १४१. वरांगचरित १४२. हरिवशंपुराण १४३.
पंचविंशतिका १४४. भावसंग्रह (प्राकृत) १४५. पुरुषार्थसिद्धयुपाय
रत्नकरण्ड श्रावकाचार १४७. उपासकाध्ययन १४८. श्रावकाचार १४९. श्रावकाचार १५०. सागारधर्मामृत १५१. धर्मसंग्रह श्रावकाचार १५२. प्रश्नोत्तर श्रावकाचार
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