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वियालीसवें समवाय का पांचवाँ सूत्र - 'संमुच्छिम - भुयपरिसप्पाणं......' है तो प्रज्ञापना १७४ में भी सम्मूर्छिम भुजपरिसर्प की उत्कृष्ट स्थिति बियालीस हजार वर्ष की बताई है।
बियालीसवें समवाय का छठा सूत्र - 'नामकम्मे बायालीसविहे पण्णत्ते..... ' है तो प्रज्ञापना १७५ में भी नामकर्म की बियालीस प्रकृतियां बताई हैं ।
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पैंतालीसवें समवाय का चौथा सूत्र 'ईसिपधारा णं पुढवी एवं चेव.....' है तो प्रज्ञापना५७६ में भी ईषत् - प्राग्भारा पृथ्वी के आयाम - विष्कम्भ का वर्णन है।
छियालीसवें समवाय का तीसरा सूत्र - 'पभंजणस्स णं वाउकुमारिंदस्स..... ' है तो प्रज्ञापना ५७७ में भी वायुकुमारेन्द्र प्रभंजन के छियालीस लाख भवनावास बताये हैं।
उनपचासवें समवाय का तृतीय सूत्र - 'तेइंदियाणं उक्कोसेणं.....' है तो प्रज्ञापना ५७८ में भी त्रीन्द्रियों की उत्कृष्ट स्थिति उनपचास अहोरात्रि की बताई है।
पचासवें समवाय का पांचवां सूत्र - 'लंतए कष्पे पन्नासं....' है तो प्रज्ञापना ५७९ में भी लांतक कल्प में पचास हजार विमान बताये हैं।
एकावनवें समवाय का पांचवां सूत्र 'दंसणावरण नामाणं.....' है तो प्रज्ञापना ५८० में भी ऐसा ही कथन है। बावनवें समवाय का चौथा सूत्र – 'नाणावरणिण्जस्स, नामस्स.....' है तो प्रज्ञापना ५८१ में भी ज्ञानावरणीय, नाम और अन्तराय इन तीन मूल प्रकृतियों की बावन उत्तर प्रकृतियाँ बताई हैं।
'बावनवें समवाय का पांचवाँ सूत्र सोहम्म सणकुमार....' है तो प्रज्ञापना ८२ में भी सौधर्म सनत्कुमार और माहेन्द्र इन तीन देवलोकों में बावन लाख विमानावास कहे हैं।
त्रेपनवें समवाय का चौथा सूत्र – सम्मुच्छिम उरपरिसप्पाणं......' है तो प्रज्ञापना ५८३ में भी सम्मूर्छिम उरपरिसर्प की उत्कृष्ट स्थिति त्रेपन हजार वर्ष की कही है।
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पचपनवें समवाय का पांचवां सूत्र – पदम विश्वासु दोसु...... ' है तो प्रज्ञापना में भी प्रथम और द्वितीय १८४ इन दो पृथ्वियों में पचपन लाख नारकोवास बताये हैं।
पचपनवें समवाय का छठा सूत्र - 'दंसणावरणिज्ज - नामाउयाणं.....' है तो प्रज्ञापना ५८५ में भी दर्शनावरणीय, नाम और आयु इन तीन मूल प्रकृतियों की पचपन उत्तर प्रकृतियाँ हैं।
५७४.
प्रज्ञापना- पद ४.
५७५.
प्रज्ञापना- पद १३, सूत्र २९३
५७६.
प्रज्ञापना- पद २
५७७.
प्रज्ञापना- पद २, सूत्र १३२
५७८. प्रज्ञापना- पद ४ सूत्र ९७
५७९.
प्रज्ञापना- पद २, सूत्र ५३
५८०.
प्रज्ञापना- पद २३, सूत्र २९३
५८१.
प्रज्ञापना- पद २३, सूत्र २९३
५८२.
प्रज्ञापना- पद २, सूत्र ४३ प्रज्ञापना- पद ४, सूत्र १७
५८३.
५८४.
प्रज्ञापना- पद २, सूत्र ८१
५८५.
प्रज्ञापना- पद २३, सूत्र २९३
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