________________
अनेकोत्तरिका-वृद्धि-समवाय]
[१६५ सहस्रारकल्प में छह हजार विमानावास कहे गये हैं।
४९५-इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए रयणस्स कंडस्स उवरिल्लाओ चरमंताओ पुलगस्स कंडस्स हेट्ठिले चरमंते एस णं सत्त जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। ७०००।
रत्नप्रभा पृथिवी के रत्नकांड के ऊपरी चरमान्त भाग से पुलककांड का निचला चरमान्त भाग सात हजार योजन के अन्तरवाला है।
विवेचन-रत्नप्रभा पृथिवी का रत्नकांड पहला है और पुलककांड सातवाँ है। प्रत्येक कांड एक-एक हजार योजन मोटा है। अत: प्रथम कांड के ऊपरी भाग से सातवें कांड का अधोभाग सात हजार योजन के अन्तर पर सिद्ध हो जाता है।
__४९६-हरिवास-रम्मया णं वासा अट्ठ जोयणसहस्साइं साइरेगाइं वित्थरेणं पण्णत्ता। ८०००।
हरिवर्ष और रम्यकवर्ष कुछ अधिक आठ हजार योजन विस्तारवाले हैं।
४९७-दाहिणड्ढ भरहस्स णं जीवा पाईण-पडीणायया दुहओ समुदं पुट्ठा नव जोयणसहस्साइं आयामेणं पण्णत्ता। ९०००।
[अजियस्स णं अरहओ साइरेगाइं नव ओहिनाणसहस्साई होत्था।]
पूर्व और पश्चिम में समुद्र को स्पर्श करने वाली दक्षिणार्ध भरतक्षेत्र की जीवा नौ हजार योजन लम्बी है।
[अजित अर्हत् के संघ में कुछ अधिक नौ हजार अवधिज्ञानी थे।] ४९८-मंदरे णं पव्वए धरणितले दस जोयणसहस्साई विक्खंभेणं पण्णत्ते। १००००। मन्दर पर्वत धरणीतल पर दश हजार योजन विस्तारवाला कहा गया है। ४९९-जम्बूदीवेणं दीवे एगं जोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं पण्णत्ते। १०००००। जम्बूद्वीप एक लाख योजन आयाम-विष्कम्भ वाला कहा गया है। ५००-लवणे णं समुद्दे दो जोयणसयसहस्साइंचक्कवालविक्खंभेणं पण्णत्ते। २०००००। लवणसमुद्र चक्रवाल विष्कम्भ से दो लाख योजन चौड़ा कहा गया है।
विवेचन-जैसे रथ के चक्र के मध्य भाग को छोड़कर उसके आरों की चौड़ाई चारों ओर एक सी होती है, उसी प्रकार जम्बूद्वीप लवणसमुद्र के मध्य भाग में अवस्थित होने से चक्र के मध्यभाग जैसा है। लवणसमुद्र की चौड़ाई सभी ओर दो-दो लाख योजन है अत: उसे चक्रवालविष्कम्भ कहा गया है।
५०१ -पासस्स अरहओ णं तिन्नि सयसाहस्सीओ सत्तावीसं च सहस्साइं उक्कोसिया सावियासंपया होत्था। ३२७०००।
पार्श्व अर्हत् के संघ में तीन लाख सत्ताईस हजार श्राविकाओं की उत्कृष्ट सम्पदा थी।