________________
१९२]
[समवायाङ्गसूत्र चूलिकाओं का कोई उल्लेख नहीं है।
५६६-से किं तं अणुओगे? अणुओगे दुविहे पण्णत्ते। तं जहा-मूलपढमाणुओगे य गंडियाणुओगे य। से किं तं मूलपढमाणुओगे? एत्थ णं अरहंताणं भगवंताणं पुव्वभवा देवलोगगमणाणि आउंचवणाणि जम्मणाणि अ अभिसेया रायवरसिरीओ सीयाओ पव्वज्जावो तवा य भत्ता केवलणाणुप्पाया अ तित्थपवत्तणाणि असंघयणं संठाणं उच्चत्तं आउं वनविभागो सीसा गणा गणहरा य अज्जा पवत्तणीओ संघस्स चउव्विहस्स जं वावि परिणामं जिण-मणपज्जवओहिनाण-सम्मत्त-सुयनाणिणो य वाई अणुत्तरगई य जत्तिया सिद्धा पाओवगआ य जे जहिं जत्तियाई छेअइत्ता अंतगडा मुणिवरुत्तमा तम-रओघविप्पमुक्का सिद्धिपहमणुत्तरं च पत्ता, एए अन्ने य एवमाइया भावा मूलपढमाणुओगे कहिआ आघविजंति पण्णविज्जति परूविज्जंति निदंसिर्जति उवदंसिजति। से त्तं मूलपढमाणुओगे।
वह अनुयोग क्या है-उसमें क्या वर्णन है? अनुयोग दो प्रकार का कहा गया है। जैसे-मूलप्रथमानुयोग और गंडिकानुयोग। मूलप्रथमानुयोग में क्या है?
मूलप्रथमानुयोग में अरहन्त भगवन्तों के पूर्वभव, देवलोक-गमन, देवभव सम्बन्धी आयु, च्यवन, जन्म, जन्माभिषेक, राज्यवरश्री, शिविका, प्रव्रज्या, तप, भक्त (आहार) केवलज्ञानोत्पत्ति, वर्ण, तीर्थप्रवर्तन, संहनन, संस्थान, शरीर-उच्चता, आयु, शिष्य, गण, गणधर, आर्या, प्रवर्तिनी, चतुर्विध संघ का परिमाण, केवलि-जिन, मन:पर्यवज्ञानी, अवधिज्ञानी सम्यक् मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी, वादी, अनुत्तर विमानों में उत्पन्न होने वाले साधु, सिद्ध, पादपोपगत, जो जहाँ जितने भक्तों का छेदन कर उत्तम मुनिवर अन्तकृत हुए, तमोरज-समूह से विप्रमुक्त हुए, अनुत्तर सिद्धिपथ को प्राप्त हुए, इन महापुरुषों का तथा इसी प्रकार के अन्य भाव मलप्रथमानयोग में कहे गये हैं वर्णित किये गये हैं. प्रज्ञापित किये गये हैं.प्ररूपित किये गये हैं, निर्देशित किये गये हैं और उपदर्शित किये गये हैं। यह मूलप्रथमानुयोग है।
५६७-से किं तं गंडियाणुओगे ? [गंडियाणुओगे] अणेगविहे पण्णत्ते, तं जहाकुलगर-गंडियाओ तित्थगरगंडियाओ गणहरगंडियाओ चक्कहरगंडियाओ दसारगंडियाओ बलदेवगंडियाओ वासुदेवगंडियाओ हरिवंसगंडियाओ भद्दबाहुगंडियाओ तवोकम्मगंडियाओ चित्तंतरगंडियाओ उस्सप्पिणीगंडियाओ ओसप्पिणीगंडियाओ अमर-नर-तिरिय-निरयगइगमणविविहपरिय-दृणाणुओगे, एवमाइयाओ गंडियाओ आघविन्जंति पण्णविन्जंति परूविजंति निदंसिर्जति उवदंसिज्जंति।से त्तं गंडियाणुओगे।
गंडिकानुयोग में क्या है? __गंडिकानुयोग अनेक प्रकार का है, जैसे-कुलकरगंडिका, तीर्थंकरगंडिका, गणधरगंडिका, चक्रवर्तीगंडिका, दशारगंडिका, बलदेवगंडिका, वासुदेवगंडिका, हरिवंशगंडिका, भद्रबाहुगंडिका, तपःकर्मगंडिका, चित्रान्तरगंडिका, उत्सर्पिणीगंडिका, अवसर्पिणी गंडिका, देव, मनुष्य, तिर्यंच और नरक गतियों में गमन तथा विविध योनियों में परिवर्तनानुयोग, इत्यादि गंडिकाएँ इस गंडिकानुयोग में कही जाती