Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Hiralal Shastri
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 329
________________ २१०] [ समवायाङ्गसूत्र तैजसशरीर, तेजस्कायिक एकेन्द्रियतैजसशरीर, वायुकायिक एकेन्द्रियतैजसशरीर और वनस्पतिकायिक एकेन्द्रियतैजसशरीर । इसी प्रकार यावत् ग्रैवेयक देवों के मारणान्तिक समुद्घातगत अवगाहना तक जाना चाहिए । ] यहां सूत्रकार ने शेष जीवों के तैजसशरीर का वर्णन न करके यावत् पद से प्रज्ञापनासूत्र में प्ररूपित की प्ररूपणा के अनुसार सूत्रार्थ को जानने की सूचना की है । प्रकृत में यह अभिप्राय है कि जिस जीव के शरीर की स्वाभाविक दशा में या समुद्घात आदि विशिष्ट अवस्था में जितनी अवगाहना होती है, उतनी ही तैजसशरीर की तथा कार्मणशरीर की अवगाहना जानना चाहिए। किस किस गति के जीव की शारीरिक अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट कितनी होती है, तथा कौन कौन से जीव समुद्घात दशा में कितने आयाम - विस्तार को धारण करते हैं, यह प्रज्ञापनासूत्र जानना चाहिए। ६०३ - गेवेज्जस्स णं भंते! देवस्स णं मारणंतियसमुग्धाएणं समोहयस्स समाणस्स महालिया सरीरोगाहणा पन्नत्ता ? गोयमा ! सरीरप्पमाणमेत्ता विक्खंभबाहल्लेणं, आयामेणं जहन्नेणं अहे जाव विज्जाहरसेढीओ । उक्कोसेणं जाव अहोलोइयग्गामाओ । उड्ढं जाव सयाइं विमाणाई, तिरियं जाव मणुस्सखेत्तं । एवं जाव अणुत्तरोववाइया । एवं कम्मयसरीरं भाणियव्वं । भगवन् ! मारणान्तिक समुद्घात को प्राप्त हुए ग्रैवेयक देव की शरीर - अवगाहना कितनी बड़ी कही गई है ? गौतम ! विष्कम्भ-बाहल्य की अपेक्षा शरीर प्रमाणमात्र कही गई है और आयाम ( लम्बाई) की अपेक्षा नीचे जघन्य यावत् विद्याधर- श्रेणी तक, उत्कृष्ट यावत् अधोलोक के ग्रामों तक तथा ऊपर अपने विमानों तक और तिरछी मनुष्यक्षेत्र तक कही गई हैं । इसी प्रकार अनुत्तरोपपातिक देवों की जानना चाहिए। इसी प्रकार कार्मण शरीर का भी वर्णन कहना चाहिए । विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में मारणान्तिकसमुद्घातगत ग्रैवेयक देव की शारीरिक अवगाहना का वर्णन कर अनुत्तर विमानवासी देवों की शरीर अवगाहना और कार्मण शरीर अवगाहना को जानने की सूचना की गई है। यह सूत्र मध्यदीपक है, अतः एकेन्द्रियों से लेकर पंचेन्द्रियों तक के तिर्यग्गति के तथा नारक, मनुष्य और देवगति के ग्रैवेयक देवों के पूर्ववर्ती सभी जीवों की स्वाभाविक शरीर - अवगाहना, तथा मारणान्तिक समुद्घातगत- अवगाहना का वर्णन प्रज्ञापना सूत्र के अनुसार जानना चाहिए। यहां संक्षेप से कुछ लिखा जाता है पृथिवीकायिक आदि एकेन्द्रिय जीवों के शरीरों की जो जघन्य और उत्कृष्ट अवगाहना बताई गई है, उतनी ही उनके तैजस और कार्मण शरीर की अवगाहना होती है । किन्तु मारणान्तिक समुद्घात या मरकर उत्पत्ति की अपेक्षा एकेन्द्रियों के प्रदेशों की लम्बाई जघन्य से अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण और उत्कर्ष से ऊपर और नीचे लोकान्त तक होती है, क्योंकि एकेन्द्रिय पृथिवीकायिक आदि जीव मर कर नीचे सातवीं पृथिवी में और ऊपर ईषत्प्राग्भार नामक पृथिवी में उत्पन्न हो सकते हैं । द्वीन्द्रियादि जीव उत्कर्ष से तिर्यग्लोक के अन्त तक मर कर उत्पन्न हो सकते हैं, अतः उनके तैजस-कार्मण शरीर की

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