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अतीत अनागतकालिक महापुरुष ]
६६१ – एएसिं नवहं वासुदेवाणं पुव्वभवे नव नियाणभूमीओ होत्था । तं जहा
महुरा य [ कण्णगवत्थू सावत्थी पोयणं च रायगिहं ।
कायंदी कोसम्बी मिहिलपुरी] हत्थिणाउरं च ॥ ६१ ॥
इन नवीं वासुदेवों की पूर्वभव में नौ निदान - भूमियाँ थीं। (जहाँ पर उन्होंने निदान [नियाणा ] किया था ।) जैसे
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१. मथुरा, २. कनकवस्तु, ३. श्रावस्ती, ४. पोदनपुर, ५. राजगृह, ६. काकन्दी, ७. कौशाम्बी, ८. मिथिलापुरी और ९. हस्तिनापुर ॥ ६१ ॥
६६२ - एते सिं णं नवण्हं वासुदेवाणं नव नियाणकारणा होत्था । तं जहागावि जुवे [ संगामे तह इत्थी पराइओ रंगे ।
भजाणुराग गोट्टी परइड्डी माउआ इय ] ॥ ६२ ॥
इन नवों वासुदेवों के निदान करने के नौ कारण थे
१. गावी (गाय), २. यूपस्तम्भ, ३. संग्राम, ४. स्त्री, ५. युद्ध में पराजय, ६. स्त्री- अनुरोग ७. गोष्ठी, ८. पर - ऋद्धि और ९. मातृका (माता) ॥ ६३॥
६६३ – एएसिं नवहं वासुदेवाणं नव पडिसत्तू होत्था । तं जहा -
अस्सग्गीवे [ तारए मेरए महुकेढवे निसुंभे य । बलिपहराए तह रावणे य नवमे ] जरासंधे ॥ ६३॥ एए खलु पडिसत्तू [ कित्ती पुरिसाण वासुदेवाणं । सव्वे वि चक्कजोही सव्वे वि हया ] सचक्के हिं ॥ ६४॥ एक्को य सत्तमीए पंच य छट्ठीए पंचमी एक्को । एक्को य चउत्थीए कण्हो पुण तच्च पुढवीए ॥ ६५ ॥ अणिदाणकडा रामा [ सव्वे वि य केसवा नियाणकडा ।
उड्ढगामी रामा के सव सव्वे अहोगामी ॥ ६६॥ अट्ठतकडा रामा एगो पुण बंभलोयकप्पंमि । एक्कस्स गब्भवसही सिज्झिस्सइ आगमिस्सेणं ॥ ६७॥ इन नवीं वासुदेवों के नौ प्रतिशत्रु (प्रतिवासुदेव) थे। जैसे
१. अश्वग्रीव, २. तारक, ३. मेरक, ४. मधु-कैटभ, ५. निशुम्भ ६. बलि, ७. प्रभराज (प्रह्लाद),
८. रावण और ९. जरासन्ध ॥ ६३ ॥ ये कीर्तिपुरुष वासुदेवों के नौ प्रतिशत्रु थे। ये सभी चक्रयोधी थे और सभी अपने चक्रों से युद्ध में मारे गये ॥ ६४ ॥
उक्त नौ वासुदेवों में से एक मर कर सातवीं पृथिवी में, पांच वासुदेव छठी पृथिवी में, एक पांचवीं में, एक चौथी में और कृष्ण तीसरी पृथिवी में गये ॥ ६५ ॥
सभी राम (बलदेव) अनिदानकृत होते हैं और सभी वासुदेव पूर्व भव में निदान करते हैं। सभी