Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Hiralal Shastri
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 353
________________ २३४] [समवायाङ्गसूत्र ६५८- तिविठे य [दुविढे य सयंभू पुरिसुत्तमे पुरिससीहे । तह पुरिसपुंडरीए दत्ते नारायणे कण्हे ॥५४॥ अयले विजये भद्दे सुप्पभे य सुदंसणे । आनंदे नंदणे पउमे रामे यावि] अपच्छिमे ॥५५॥ उनमें वासुदेवों के नाम इस प्रकार हैं - १. त्रिपृष्ठ, २. द्विपृष्ठ, ३. स्वयम्भू, ४. पुरुषोत्तम, ५. पुरुषसिंह, ६. पुरुषपुंडरीक,७. दत्त, ८. नारायण (लक्ष्मण) और ९. कृष्ण ॥५४॥ बलदेवों के नाम इस प्रकार हैं- १. अचल, २. विजय, ३. भद्र, ४. सुप्रभ, ५. सुदर्शन, ६. आनन्द,७. नन्दन, ८. पद्म और अन्तिम बलदेव राम॥५५॥ ६५९ -एएसिंणंणवण्हं बलदेव-वासुदेवाणं पुव्वभविया नव नामधेज्जा होत्था।तं जहा विस्सभूई पव्वयए धणदत्त समुद्ददत्त इसिवाले । पियमित्त ललियमित्ते पुणव्वसू गंगदत्ते य ॥५६॥ एयाई नामाई पुव्वभवे आसि वासुदेवाणं । एत्तो बलदेवाणं जहक्कम कित्तइस्सामि ॥५७॥ विसनन्दी य सुबन्धू सागरदत्ते असोगललिए य । वाराह धम्मसेणे अपराइय रायललिए य ॥५८॥ इन नव बलदेवों और वासुदेवों के पूर्व भव केनौ नाम इस प्रकार थे १. विश्वभूति, २. पर्वत, ३. धनदत्त, ४. समुद्रदत्त, ५. ऋषिपाल, ६. प्रियमित्र, ७. ललितमित्र, ८. पुनर्वसु, और ९. गंगदत्त । ये वासुदेवों के पूर्व भव में नाम थे। इससे आगे यथाक्रम से बलदेवों के नाम कहूँगा ॥ ५६-५७॥ १. विश्वनन्दी, २. सुबन्धु, ३. सागरदत्त, ४. अशोक, ५. ललित, ६. वाराह, ७. धर्मसेन, ८. अपराजित और ९. राजललित ॥ ५८॥ ६६०-एएसिंनवण्हं बलदेव-वासुदेवाणं पुव्वभविया नव धम्मायरिया होत्था।तं जहा संभूय सुभद्द सुदंसणे य सेयंस कण्ह गंगदत्ते य । सागर समुद्दनामे दुमसेणे य णवमए ॥५९॥ एए धम्मायरिया कित्तीपुरिसाण वासुदेवाणं । पुव्वभवे एयासिं जत्थ नियाणाई कासी य ॥६०॥ इन नव बलदेवों और वासुदेवों के पूर्वभव में नौ धर्माचार्य थे १. संभूत, २. सुभद्र, ३.सुदर्शन, ४. श्रेयान्स, ५. कृष्ण, ६. गंगदत्त, ७. सागर, ८. समुद्र और ९. द्रुमसेन ॥ ५९॥ ये नवों ही आचार्य कीर्ति पुरुष वासुदेवों के पूर्वभव में धर्माचार्य थे। जहाँ वासुदेवों ने पूर्व भव में निदान किया था उन नगरों के नाम आगे कहते हैं - ॥ ६०॥

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