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[समवायाङ्गसूत्र महाबला अनिहता अपराइया सत्तुमद्दणा रिपुसहस्समाणमहणा साणुक्कोसा अमच्छरा अचवला अचंडा मियमंजुलपलावहसिया गंभीरमधुर-पडिपुण्णसच्चवयणा अब्भुवगयवच्छला सरण्णा लक्खण-वंजणगुणोववेआ माणुम्माणपमाणपडिपुण्ण-सुजायसव्वंगसुंदरंगा ससिसोमागार-कंतपियदंसणा अमरिसणा पयंडदंडप्पभारा गंभीरदरिसणिज्जा तालद्धओव्विद्ध-गरुलकेऊ, महाधणुविकड्ढया महासत्तसाअरा दुद्धरा धणुद्धरा धीरपुरिसा जुद्धकित्तिपुरिसा विउलकुलसमुब्भवा महारयणविहाडगा अद्धभरहसामी सोमा रायकुलवंसतिलया अजिया अजियरहा हल-मुसलकणक-पाणी संख-चक्क-गय-सत्ति-नंदगधरा पवरुज्जल-सुक्कंत-विमल-गोत्थुभ-तिरीडधारी कुंडल-उज्जोइयाणणा पुंडरीयणयणा एकावलि-कण्ठ-लइयवच्छा सिरिवच्छ-सुलंछणा वरजसा सव्वोउयसुरभि-कुसुम-रचित-पलंब-सोभंत-कंत-विकसंत-विचित्तवर-मालरइय-वच्छा अट्ठसयविभत्त-लक्खण-पसत्थ-सुंदर-विरइयंगमंगा मत्तगयवरिद-ललिय-विक्कम-विलसियगई सारयनव थिणिय-महुर-गंभीर-कोंच-निग्घोस-दुंदुभिसरा कडिसुत्तग-नील-पीय-कोसेन्जवाससा पवरदित्ततेया नरस्सीहा नरवई नरिंदा नरवसहा मरुयवसभकप्पा अब्भहियरायतेयलच्छीए दिप्पमाणा नीलग-पीयगवसण दुवे दुवे राम-केसवा भायरो होत्था। तं जहा
इस जम्बूद्वीप में इस भारतवर्ष के इस अवसर्पिणीकाल में नौ दशारमंडल (बलदेव और वासुदेव समुदाय) हुए हैं। सूत्रकार उनका वर्णन करते हैं -
वे सभी बलदेव और वासुदेव उत्तम कुल में उत्पन्न हुए श्रेष्ठ पुरुष थे, तीर्थंकरादि शलाका-पुरुषों के मध्यवर्ती होने से मध्यम पुरुष थे, अथवा तीर्थंकरों के बल की अपेक्षा कम ओर सामान्य जनों के बल की अपेक्षा अधिक बलशाली होने से वे मध्यम पुरुष थे। अपने समय के पुरुषों के शौर्वादि गुणों की प्रधानता की अपेक्षा वे प्रधान पुरुष थे। मानसिक बल से सम्पन्न होने के कारण ओजस्वी थे। देदीप्यमान शरीरों के धारक होने से तेजस्वी थे। शारीरिक बल से संयुक्त होने के कारण वर्चस्वी थे, पराक्रम के द्वारा प्रसिद्धि को प्राप्त करने से यशस्वी थे। शरीर की छाया (प्रभा) से युक्त होने के कारण वे छायावन्त थे। शरीर की कान्ति से युक्त होने से कान्त थे, चन्द्र के समान सौम्य मुद्रा के धारक थे, सर्वजनों के वल्लभ होने से वे सुभग या सौभाग्यशाली थे। नेत्रों को अतिप्रिय होने से वे प्रियदर्शन थे। समचतुरस्र संस्थान के धारक होने से वे सुरूप थे। शुभ स्वभाव होने से वे शुभशील थे। सुखपूर्वक सरलता से प्रत्येक जन उनसे मिल सकता था, अत: वे सुखाभिगम्य थे। सर्वजनों के नयनों के प्यारे थे। कभी नहीं थकनेवाले अविच्छिन्न प्रवाहयुक्त बलशाली होने से वे ओघबली थे, अपने समय के सभी पुरुषों के बल का अतिक्रमण करने से अतिबली थे और महान् प्रशस्त या श्रेष्ठ बलशाली होने से वे महाबली थे। निरुपक्रम आयुष्य के धारक होने से अनिहत अर्थात् दूसरे के द्वारा होने वाले घात या मरण से रहित थे, अथवा मल्ल-युद्ध में कोई उनको पराजित नहीं कर सकता था, इसी कारण वे अपराजित थे। बड़े-बड़े युद्धों में शत्रुओं का मर्दन करने से वे शत्रुमर्दन थे, सहस्रों शत्रुओं के मान का मथन करने वाले थे। आज्ञा या सेवा स्वीकार करने वालों पर द्रोह छोड़कर कृपा करने वाले थे। वे मात्सर्य-रहित थे, क्योंकि दूसरों के लेश मात्र भी गुणों के ग्राहक थे। मन वचन काय की स्थिर प्रवृत्ति के कारण वे अचपल (चपलता-रहित) थे। निष्कारण प्रचण्ड