Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Hiralal Shastri
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 358
________________ अतीत अनागतकालिक महापुरुष] [२३९ इसी जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में आगामी उत्सर्पिणी काल में नौ बलदेवों और नौ वासुदवों के पिता होंगे, नौ वासुदेवों की माताएं होंगी, नौ बलदेवकों की माताएं होंगी, नौ दशार-मंडल होंगे। वे उत्तम पुरुष, मध्यम पुरुष, प्रधान पुरुष, ओजस्वी तेजस्वी आदि पूर्वोक्त विशेषणों से युक्त होंगे। पूर्व में जो दशारमंडल का विस्तृत वर्णन किया है, वह सब यहाँ पर भी यावत् बलदेव नील वसनवाले और वासुदेव पीत वसनवाले होंगे, यहाँ तक ज्यों का त्यों कहना चाहिए। इस प्रकार भविष्यकाल में दो-दो राम और केशव भाई होंगे। उनके नाम इस प्रकार होंगे १. नन्द, १. नन्दमित्र, ३. दीर्घबाहु, ४. महाबाहु, ५. अतिबल, ६. महाबल,७. बलभद्र, ८. द्विपृष्ठ और ९. त्रिपृष्ठ, ये नौ आगामी उत्सर्पिणी काल में नौ वृष्णी या वासुदेव होंगे। तथा १. जयन्त, २. विजय, ३. भद्र, ४. सुप्रभ, ५.सुदर्शन, ६. आनन्द,७. नन्दन,८.पद्म, और अन्तिम ९.संकर्षण ये नौ बलदेव होंग ॥ ८५-८६॥ ६७३-एएसिणं नवण्हं बलदेव-वासुदेवाणं पुव्वभविया णव नामधेजा भविस्संति, णव धम्मायरिया भविस्संति, नव नियाणभूमीओ भविस्संति, नव नियाणकारणा भविस्संति, नव पडिसत्तू भबिस्संति। तं जहा तिलए य लोहजंघे वइरजंघे य केसरी पहराए । अपराइए य भीमे महाभीमे य सुग्गीवे ॥ ८७॥ एए खलु पडिसत्तू कित्तीपुरिसाण वासुदेवाणं । सव्वे वि चक्कजोही हम्महिंति सचक्केहिं ॥८८॥ इन नवों बलदेवों और वासुदेवों के पूर्वभव के नौ नाम होंगे, नौ धर्माचार्य होंगे, नौ निदान-भूमियाँ होंगी, नौ निदान-कारण होंगे और नौ प्रतिशत्रु होंगे। जैसे १. तिलक, २. लोहजंघ, ३. वज्रजंघ, ४. केशरी, ५. प्रभराज, ६. अपराजित, ७. भीम, ८. महाभीम, और ९. सुग्रीव। कीर्तिपुरुष वासुदेवों के ये नौ प्रतिशत्रु होंगे। सभी चक्रयोधी होंगे और युद्ध में अपने चक्रों से मारे जायेंगे॥ ८७-८८॥ ६७४-जंबुद्दीवे [णं दीवे ] एरवए वासे आगमिस्साए उस्सप्पिणीए चउव्वीसं तित्थकरा भविस्संति। तं जहा सुमंगले य सिद्धत्थे णिव्वावणे य महाजसे । धम्मज्झए य अरहा आगमिस्साण होक्खई ॥ ८९॥ सिरिचंदे पुष्फकेऊ महाचंदे य केवली । सुयसागरे य अरहा आगमिस्साण होक्खई ॥९०॥ सिद्धत्थे पुण्णघोसे य महाघोसे य केवली । सच्चसेणे य अरहा आगमिस्साण होक्खई ॥९१॥ सूरसेणे य अरहा महासेणे य केवली । सव्वाणंदे य अरहा देवउत्ते य होक्खई ॥१२॥

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