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[समवायाङ्गसूत्र सुपासे सुव्वए अरहा अरहे य सुकोसले । अरहा अणंतविजए आगमिस्साण होक्खई ॥१३॥ विमले उत्तरे अरहा अरहा य महाबले । देवाणंदे य अरहा आगमिस्साण होक्खई ॥१४॥ एए वुत्ता चउव्वीसं एरवयम्मि केवली।
आगमिस्साण होक्खंति धम्मतित्थस्स देसगा ॥१५॥ इसी जम्बूद्वीप के ऐरवत वर्ष में आगामी उत्सर्पिणी काल में चौबीस तीर्थंकर होंगे। जैसे
१. सुमंगल, २. सिद्धार्थ, ३. निर्वाण, ४. महायश, ५. धर्मध्वज, ये अरहन्त भगवन्त आगामी काल में होंगे॥ ८९ ॥ पुनः ६. श्रीचन्द्र, ७. पुष्पकेतु, ८. महाचन्द्र केवली और ९. श्रुतसागर अर्हन् होंगे॥ १० ॥ पुन: १० सिद्धार्थ ११. पूर्णघोष, १२. महाघोष केवली और १३. सत्यसेन अर्हन होंगे॥९१॥ तत्पश्चात १४. सूरसेन अर्हन् १५. महासेन केवली, १६. सर्वानन्द और १७. देवपुत्र अर्हन् होंगे॥ ९२ ॥ तदनन्तर, १८. सुपार्श्व, १९. सुव्रत अर्हन्, २०. सुकोशल अर्हन् और २१. अनन्तविजय अर्हन् आगामी काल में होंगे॥ ९३॥ तदनन्तर, २२. विमल अर्हन, उनके पश्चात् २३. महाबल अर्हन् और फिर २४. देवानन्द अर्हन् आगामी काल में होंगे॥ ९४ ॥ ये ऊपर कहे हुए चौबीस तीर्थंकर केवली ऐवत वर्ष में आगामी उत्सर्पिणी काल में धर्मतीर्थ की देशना करने वाले होंगे॥ ९५ ॥
६७५-[जंबुद्दीवे णं दीवे एरवए वासे आगमिस्साए उस्सप्पिणीए ] बारस चक्कवट्टिणो भविस्संति, बारस चक्कवट्टिपियरो भविस्संति, बारस मायरो भविस्संति, बारस इत्थीरयणा भविस्संति। नव बलदेव-वासुदेवपियरो भविस्संति, नव वासुदेवमायरो भविस्संति, नव बलदेवमायरो भविस्संति। नव दसारमंडला भविस्संति, उत्तिमा पुरिसा मज्झिमपुरिसा पहाणपुरिसा जाव दुवे दुवे राम-केसवा भायरो, भविस्संति, णव पडिसत्तू भविस्संति, नव पुव्वभवनामधेजा, णव धम्मायरिया, णव णियाणभूमीओ, णव णियाणकारणा आयाए एरवए आगमिस्साए भाणियव्वा।
[इसी जंबूद्वीप के ऐरवत वर्ष में आगामी उत्सर्पिणी काल में] बारह चक्रवर्ती होंगे, बारह चक्रवर्तियों के पिता होंगे, उनकी बारह माताएं होंगी, उनके बारह स्त्रीरत्न होंगे। नौ बलदेव और वासुदेवों के पिता होंगे, नौ वासुदेवों की माताएं होंगी, नौ बलदेवों की माताएं होंगी। नौ दशार मंडल होंगे, जो उत्तम पुरुष, मध्यम पुरुष, प्रधान पुरुष यावत् सर्वाधिक राजतेज रूप लक्ष्मी से देदीप्यमान दो-दो राम-केशव (बलदेव-वासुदेव) भाई-भाई होंगे। उनके नौ प्रतिशत्रु होंगे, उनके नौ पूर्वभव के नाम होंगे, उनके नौ धर्माचार्य होंगे, उनकी नौ निदानभूमियां होंगी, निदान के नौ कारण होंगे। इसी प्रकार से आगामी उत्सर्पिणी काल में ऐरवत क्षेत्र में उत्पन्न होने वाले बलदेवादि का मुक्ति-गमन, स्वर्ग से आगमन, मनुष्यों में उत्पत्ति और मुक्ति का भी कथन करना चाहिए।
६७६ -एवं दोसु वि आगमिस्साए भाणियव्वा।
इसी प्रकार भरत और ऐरवत इन दोनों क्षेत्रों में आगामी उत्सर्पिणी काल में होने वाले वासुदेव आदि का कथन करना चाहिए।