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[समवायाङ्गसूत्र राम मरण कर ऊर्ध्वगामी होते हैं और सभी वासुदेव अधोगामी होते हैं ॥६६॥
आठ राम (बलदेव) अन्तकृत् अर्थात् कमों का क्षय करके संसार का अन्त करने वाले हुए। एक अन्तिम बलदेव ब्रह्मलोक में उत्पन्न हए। जो आगामी भव में एक गर्भ-वास लेकर सिद्ध होंगे।६।।
६६४-जंबुद्दीवे [णं दीवे ] एरवए वासे इमीसे ओसप्पिणीए चउव्वीसं तित्थयरा होत्था। तं जहा
चंदाणणं सुचंदं अग्गीसेणं च नंदिसेणं च । इसिदिण्णं ववहारिं वंदिमो सोमचंदं च ॥६८॥ वंदामि जुत्तिसेणं अजियसेणं तहेव सिवसेणं । बुद्धं च देवसम्मं सययं निक्खित्तसत्थं च ॥६९॥ असंजलं जिणवसहं वंदे य अणंतयं अमियणाणिं । उवसंतं च धुयरयं वंदे खलु गुत्तिसेणं च ॥७०॥ अतिपासं च सुपासं देवेसरवंदियं च मरुदेवं । निव्वाणगयं च धरं खीणदुहं सामकोठं च ॥७१॥ जियरागमग्गिसेणं वंदे खीणरयमग्गिउत्तं च ।
वोक्कसियपिज्जदोसं वारिसेणं गयं सिद्धिं ॥७२॥ इसी जम्बूद्वीप के ऐरवत वर्ष में इसी अवसर्पिणी काल में चौबीस तीर्थंकर हुए हैं -
१. चन्द्र के समान मुख वाले सुचन्द्र, २. अग्निसेन, ३. नन्दिसेन, ४. व्रतधारी ऋषिदत्त और ५. सोमचन्द्र की मैं वन्दना करता हूं ॥६७॥६. युक्तिसेन, ७. अजितसेन, ८. शिवसेन, ९. बुद्ध, १०. देवशर्म, ११. निक्षिप्तशस्त्र (श्रेयान्स) की मैं सदा वन्दना करता हूं ॥६९ ॥१२. असंज्वल, १३. जिनवृषभ और १४. अमितज्ञानी अनन्त जिन की मैं वन्दना करता हूं। १५. कर्मरज-रहित उपशान्त और १६. गुप्तिसेन की भी मैं वन्दना करता हूं ॥७० ॥१७. अतिपार्श्व, १८. सुपार्श्व, तथा १९. देवेश्वरों से वन्दित मरुदेव, २०.निर्वाण को प्राप्त धर और २१. प्रक्षीण दु:ख वाले श्यामकोष्ठ, २२. रागविजेता अग्निसेन, २३. क्षीणरागी अग्निपुत्र
और राग-द्वेष का क्षय करने वाले, सिद्धि को प्राप्त चौबीसवें वारिषेण की मैं वन्दना करता हूं (कहीं-कहीं नामों के क्रम में भिन्नता भी देखी जाती है।) ॥७१-७२॥
६६५-जंबुद्दीवे [णं दीवे ] आगमिस्साए उस्सप्पिणीए भारहे वासे सत्त कुलगारा भविस्संति। तं जहा
मियबाहणे सुभूमे य सुप्पभे य सयंपभे।
दत्ते सुहमे सुबंधू य आगमिस्साण होक्खंति॥७३॥ इसी जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में आगामी उत्सर्पिणी काल में सात कुलकर होंगे। जैसे
१. मितवाहन, २. सुभूम, ३. सुप्रभ, ४. स्वयम्प्रभ, ५. दत्त, ६. सूक्ष्म और ७. सुबन्धु, ये आगामी उत्सर्पिणी में सात कुलकर होंगे॥७३॥
६६६-जंबुद्दीवेणं दीवे आगमिस्साए उस्सप्पिणीए एरवए वासे दस कुलगरा भविस्संति। तं जहा-विमलवाहणे सीमंकरे सीमंधरे खेमंकरे खेमंधरे दढधणू दसधणू सयधणू पडिसूई