Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Hiralal Shastri
Publisher: Agam Prakashan Samiti

Previous | Next

Page 348
________________ अतीत अनागतकालिक महापुरुष] [२२९ विवेचन-जिस वृक्ष के नीचे तीर्थंकरों को केवलज्ञान प्राप्त हुआ उसे चैत्यवृक्ष कहते हैं। कुछ के मतानुसार तीर्थंकर जिस वृक्ष के नीचे जिन-दीक्षा ग्रहण करते हैं, उसे चैत्यवृक्ष कहा जाता है। कुबेर समवसरण में तीर्थंकर के बैठने के स्थान पर उसी वृक्ष की स्थापना करता है और उसे ध्वजा-पताका, वेदिका और तोरण द्वारों से सुसज्जित करता है। समवसरण-स्थित इन वट, शाल आदि सभी वृक्षों को 'अशोकवृक्ष' कहा जाता है, क्योंकि इनकी छाया में पहुंचते ही शोक-सन्तप्त प्राणी का भी शोक दूर होता है और वह अशोक (शोक-रहित) हो जाता है। ६४८-एएसिं चउव्वीसाए तित्थगराणं चउव्वीसं पढमसीसा होत्था। तहा पढमेत्थ उसभसेणे बीइए पुण होई सीहसेणे य। चारू य वज्जणाभे चमरे तह सव्वय विदब्भे ॥४०॥ दिण्णे य वराहे पुण आणंदे गोथुभे सुहम्मे य । मंदर जसे अरिढे चक्काह सयंभु कुंभे य ॥४१॥ इंदे कुंभे य सुभे वरदत्ते दिण्ण इंदभूई य । उदितोदित-कुलवंसा विसुद्धवंसा गुणेहिं उववेया ॥४२॥ तित्थप्पवत्तयाणं पढमा सिस्सा जिणवराणं। . इन चौबीस तीर्थंकरों के चौबीस प्रथम शिष्य थे। जैसे १. ऋषभदेव के प्रथम शिष्य ऋषभसेन, और दूसरे अजितजिन के प्रथम शिष्य २ सिंहसेन थे। पुनः क्रम से ३. चारु, ४. वज्रनाभ, ५. चमर, ६. सुव्रत, ७. विदर्भ, ८. दत्त, ९. वराह, १०. आनन्द, ११. गोस्तुभ, १२. सुधर्म, १३. मन्दर, १४. यश, १५. अरिष्ट, १६. चक्ररथ, १७. स्वयम्भू, १८. कुम्भ, १९. इन्द्र,२०. कुम्भ, २१. शुभ, २२. वरदत्त २३. दत्त और २४. इन्द्रभूति प्रथम शिष्य हुए। ये सभी उत्तम उच्चकुल वाले, विशुद्धवंश वाले और गुणों से संयुक्त थे और तीर्थ-प्रवर्तक जिनवरों के प्रथम शिष्य थे॥४०-४२१/२ ॥ ६४९–एएसिंणं चउवीसाए तित्थगराणं चउवीसं पढमसिस्सणी होत्था। तं जहा बंभी य फग्गु सामा अजिया कासवी रई सोमा । समणा वारुणि सलसा धारणि धरणी य धरणिधरा ॥४३॥ पउमा सिवा सुई तह अंजुया भावियप्पा य । रक्खी य बंधुवती पुप्फवती अज्जा अमिला य अहिया ॥४४॥ जस्सिणी पुप्फचूला य चंदणज्जा आहिया उ । उदितोदियकुलवंसा विसुद्धवंसा गुणेहिं उववेया ॥४५॥ तित्थप्पवत्तयाणं पढमा सिस्सी जिणवराणं। इन चौबीस तीर्थंकरों की चौबीस प्रथम शिष्याएं थीं। जैसे १. ब्राह्मी, २. फल्गु, ३. श्यामा, ४. अजिता, ५. काश्यपी, ६. रति, ७. सोमा, ८. सुमना, ९. वारुणी, १०. सुलसा, ११. धारिणी, १२. धरणी, १३. धरणिधरा १४. पद्मा, १५. शिवा, १६. शुचि, १७. अंजुका, १८. भावितात्मा, १९. बन्धुमती, २०. पुष्पवती, २१. आर्या अमिला २२. यशस्विनी, २३. पुष्पचूला और २४. आर्या चन्दना। ये सब उत्तम उन्नत कुलवाली, विशुद्धवंश वाली, गुणों से संयुक्त थीं

Loading...

Page Navigation
1 ... 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379