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विविधविषय निरूपण]
[२२१ सादिसंस्थान कहते हैं। जिस शरीर के अवयव लक्षणयुक्त होते हुए भी विकृत और छोटे हों, तथा मध्यभाग में पीठ या छाती की ओर कूबड़ निकली हो, उसे कुब्जकसंस्थान कहते हैं। जिस शरीर में सभी अंग लक्षणशास्त्र के अनुरूप हों, पर शरीर बौना हो, उसे वामनसंस्थान कहते हैं। जिस शरीर में हाथ पैर आदि सभी अवयव शरीर-शास्त्र के प्रमाण से विपरीत हों उसे हुण्डसंस्थान कहते हैं। सभी नारकी जीव हुण्डसंस्थान वाले और सभी देव समचतुरस्रसंस्थान वाले कहे गये हैं। शेष मनुष्य और तिर्यंच छहों संस्थान वाले होते हैं।
६२२–णेरइया णं भंते! किंसंठाणी पन्नत्ता। गोयमा! हुंडसंठाणी पन्नत्ता। असुरकुमारा किंसंठाणी पन्नत्ता? गोयमा! समचउरंससंठाणसंठिया पन्नत्ता। एवं जाव थणियकुमारा।
भगवन् ! नारकी जीव किस संस्थानवाले कहे गये हैं? गौतम! नारक जीव हुंडकसंस्थान वाले कहे गये हैं। भगवन् ! असुरकुमार देव किस संस्थानवाले होते हैं? गौतम! असुरकुमार देव समचतुरस्रसंस्थान वाले होते हैं। इसी प्रकार स्तनितकुमार तक के सभी भवनवासी देव समचतुरस्रसंस्थान वाले होते हैं।
६२३ –पुढवी मसूरसंठाणा पन्नत्ता। आऊ थिबुयसंठाणा पन्नत्ता। तेऊ सूईकलावसंठाणा पण्णत्ता। वाऊ पडागासंठाणा पन्नत्ता। वणस्सई नाणासंठाणसंठिया पन्नत्ता।
पृथिवीकायिक जीव मसूरसंस्थान वाले कहे गये हैं। अप्कायिक जीव स्तिबुक (बिन्दु), संस्थानवाले कहे गये हैं। तेजस्कायिक जीव सूचीकलाप संस्थानवाले (सुइयों के पुंज के समान आकार वाले) कहे गये हैं । वायुकायिक जीव पताका-(ध्वजा-) संस्थानवाले कहे गये हैं । वनस्पतिकायिक जीव नाना प्रकार के संस्थानवाले कहे गये हैं। . ६२४-बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिदिय-सम्मुच्छिम-पंचेंदियतिरिक्खा हुंडसंठाणा पन्नत्ता। गब्भवक्कंतिया छव्विहसंठाणा (पन्नत्ता)। संमुच्छिममणुस्सा हुंडसंठाणगंठिया पन्नत्ता। गब्भवक्कंतियाणं मणुस्साणं छव्विहा संठाणा पन्नत्ता।जहा असुरकुमारा तहा वाणमंतर-जोइसियवेमाणिया वि।
द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और सम्मूच्छिम पंचेन्द्रियतिर्यंच जीव हुंडक संस्थानवाले और गर्भोपक्रान्तिक तिर्यंच छहों संस्थानवाले कहे गये हैं। सम्मूछिम मनुष्य हुंडक संस्थानवाले तथा गर्भोपक्रान्तिक मनुष्य छहों संस्थानवाले कहे गये हैं।
जिस प्रकार असुरकुमार देव समचतुरस्र संस्थान वाले होते हैं, उसी प्रकार वानव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देव भी समचतुरस्र संस्थानवाले होते हैं। __६२५–कइविहे णं भंते! वेए पन्नत्ते ? गोयमा! तिविहे वेए पन्नत्ते, तं जहा-इत्थीवेए पुरिसवेए नपुंसवेए।
भगवन् ! वेद कितने प्रकार के हैं?