Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Hiralal Shastri
Publisher: Agam Prakashan Samiti

Previous | Next

Page 345
________________ २२६] . [समवायाङ्गसूत्र इन चौबीस तीर्थंकरों को चौबीस शिविकाएं (पालकियां) थीं। (जिन पर विराजमान होकर तीर्थंकर प्रव्रज्या के लिए वन में गए।) जैसे १. सुदर्शना शिविका, २. सुप्रभा, ३. सिद्धार्था, ४. सुप्रसिद्धा, ५. विजया, ६. वैजयन्ती, ७. जयन्ती, ८. अपराजिता, ९. अरुणप्रभा, १०. चन्द्रप्रभा, ११. सूर्यप्रभा, १२. अग्निप्रभा, १३. सुप्रभा, १४. विमला, १५. पंचवर्णा, १६. सागरदत्ता, १७. नागदत्ता, १८. अभयकरा, १९. निर्वृतिकरा, २०. मनोरमा, २१. मनोहरा, २२. देवकुरा, २३. उत्तरकुरा और २४. चन्द्रप्रभा। ये सभी शिविकाएं विशाल थीं। १५१७॥ सर्वजगत्-वत्सल सभी जिनवरेन्द्रों की ये शिविकाएं सर्व ऋतुओं में सुखदायिनी उत्तम और शुभकान्ति से युक्त होती हैं ॥१॥ ६३८-पुट्विं ओक्खित्ता माणुसेहिं सा हट्ट (8) रोमकूवेहिं । पच्छा · वहंति सीयं असुरिंद-सुरिंद-नागिंदा ॥१९॥ चल-चवल-कुंडलधरा सच्छंदविउव्वियाभरणधारौ । सुर-असुर-वंदिआणं वहंति सी जिणिंदाणं ॥२०॥ पुरओ वहंति देवा नागा पुण दाहिणम्मि पासम्मि । पच्चच्छिमेण असुरा गरुला पुण उत्तरे पासे ॥२१॥ जिन-दीक्षा ग्रहण करने से लिए जाते समय तीर्थंकरों की इन शिविकाओं को सबसे पहिले हर्ष से रोमाञ्चित मनुष्य अपने कन्धों पर उठाकर ले जाते हैं। पीछे असुरेन्द्र, सुरेन्द्र और नागेन्द्र उन शिविकाओं को लेकर चलते हैं ॥१९॥ चंचल चपल कुण्डलों के धारक और अपनी इच्छानुसार विक्रियामय आभूषणों को धारण करने वाले वे देवगण सुर-असुरों से वन्दित जिनेन्द्रों की शिविकाओं को वहन करते हैं ॥२०॥ इन शिविकाओं को पूर्व की ओर [वैमानिक] देव, दक्षिण पार्श्व में नागकुमार, पश्चिम पार्श्व में असुरकुमार और उत्तर पार्श्व में गरुड़कुमार देव वहन करते हैं ॥२१॥ ६३९- उसभो य विणीयाए बारवईए अरिट्ठवरणेमी। __ अवसेसा तित्थयरा निक्खंता जम्मभूमीसु ॥२२॥ ऋषभदेव विनीता नगरी से, अरिष्टनेमि द्वारावती से और शेष सर्व तीर्थंकर अपनी-अपनी जन्मभूमियों से दीक्षा ग्रहण करने के लिए निकले थे॥२२॥ ६४०- सव्वे वि एगदूसेण [णिग्गया जिणवरा चउव्वीसं]। ण य णाम अण्णलिंगे ण य गिहिलिंगे कुलिंगे व ॥ २३॥, सभी चौबीसों जिनवर एक दूष्य (इन्द्र-समर्पित दिव्य वस्त्र) से दीक्षा-ग्रहण करने के लिए निकले थे। न कोई अन्य पाखंडी लिंग से दीक्षित हुआ, न गृहिलिंग से और न कुलिंग से दीक्षित हुए। (किन्तु सभी जिन-लिंग से ही दीक्षित हुए थे।)

Loading...

Page Navigation
1 ... 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379