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[समवायाङ्गसूत्र ६१९-असुरकुमारा णं भंते! किंसंघयणा पन्नता? गोयमा! छण्हं संघयणाणं असंघयणी। णेवट्ठी नेव छिरा णेव पहारू। जे पोग्गला इट्ठा कंता पिया (आएज्जा) मणुण्णा (सुभा) मणामा मणाभिरामा, ते तेसिं असंघयणत्ताए परिणमंति। एवं जाव थणियकुमाराणं।
भगवन् ! असुरकुमार देव किस संहनन वाले कहे गये हैं?
गौतम ! असुरकुमार देवों के छहों संहननों में से कोई भी संहनन नहीं होता है। वे असंहननीय होते हैं, क्योंकि उनके शरीर में हड्डी नहीं होती है, नहीं शिराएं होती हैं, और न ही स्नायु होती हैं। जो पुगद्ल इष्ट, कान्त, प्रिय (आदेय, शुभ) मनोज्ञ, मनाम और मनोभिराम होते हैं, उनसे उनका शरीर संहनन-रहित ही परिणत होता है।
इस प्रकार नागकुमारों से लेकर स्तनितकुमार देवों तक जानना चाहिए अर्थात् उनके कोई संहनन नहीं होता।
६२०-पुढवीकाइया णं भंते! किंसंघयणी पन्नत्ता? गोयमा! छेवट्टसंघयणी पन्नत्ता। एवं जाव संमुच्छिम-पंचिदियतिरिक्खजोणिय त्ति। गब्भवक्कंतिया छव्विहसंघयणी। संमुच्छिममणुस्सा छेवट्टसंघयणी। गब्भवक्कंतियमणुस्सा छव्विहसंघयणी। जहा असुरकुमारा तहा वाणमंतरजोइसिय-वेमाणिया य।
भगवन् ! पृथिवीकायिक जीव किस संहनन वाले कहे गये हैं? गौतम ! पृथिवीकायिक जीव सेवार्तसंहनन वाले कहे गये हैं।
इसी प्रकार अप्कायिक से लेकर सम्मूच्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक तक के सब जीव सेवार्त संहनन वाले होते हैं । गर्भोपक्रान्तिक तिर्यंच छहों प्रकार के संहनन वाले होते हैं । सम्मूछिम मनुष्य सेवार्त संहनन वाले होते हैं । गर्भोमक्रान्तिक मनुष्य छहों प्रकार के संहनन वाले होते हैं।
जिस प्रकार असुरकुमार देव संहनन-रहित हैं, उसी प्रकार वानव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देव भी संहनन-रहित होते हैं।
. ६२१-कइविहे णं भंते! संठाणे पन्नत्ते? गोयमा! छव्विहे संठाणे पन्नत्ते। तं जहासमचउरंसे १, णिग्गोहपरिमंडले २, साइए ३, वामणे ४, खुन्जे ५, हुंडे ६।
भगवन् ! संस्थान कितने प्रकार का कहा गया है ?
गौतम! संस्थान छह प्रकार का है- १. समचतुरस्रसंस्थान, २. न्यग्रोधपरिमंडलसंस्थान, ३. सादि या स्वातिसंस्थान, ४. वामनसंस्थान, ५. कुब्जकसंस्थान, ६. हुंडकसंस्थान।
विवेचन- शरीर के आकार को संस्थान कहते हैं। जिस शरीर के अंग और उपांग न्यूनता और अधिकता से रहित शास्त्रोक्त मान-उन्मान-प्रमाण वाले होते हैं, उसे समचतुरस्रसंस्थान कहते हैं। जिस शरीर में नाभि से ऊपर के अवयव तो शरीर-शास्त्र के अनुसार ठीक-ठीक प्रमाणवाले हों किन्तु नाभि से नीचे के अवयव हीन प्रमाण वाले हों, उसे न्यग्रोधसंस्थान कहते हैं। जिस शरीर में नाभि से नीचे के अवयव तो शरीर-शास्त्र के अनुरूप हों, किन्तु नाभि से ऊपर के अवयव उसके प्रतिकूल हों, उसे