Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Hiralal Shastri
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 328
________________ विविधविषय निरूपण] [२०९ उपसंहार-यह आहारकशरीर ऋद्धिप्राप्त छठे गुणस्थानवर्ती प्रमत्तसंयत मुनि को होता है। इस स्थल पर मूलसूत्र में वयणा वि भाणियब्वा' पाठ है, उसका अभिप्राय यह है कि मूल पाठ में आहारकशरीर किसके होता है? इससे संबद्ध गौतम स्वामी द्वारा किये गये प्रश्नों के भ. महावीर ने जो उत्तर दिये हैं उन्हें मूल में 'कम्मभूमिग.' आदि पदों के आगे गोल बिन्दु (०) दिये गये हैं, उनसे सूचित वचनों को कहने के लिए संकेत किया गया है, जिसे ऊपर अनुवाद में पूरा दिया ही गया है। ६००-आहारयसरीरे समचउरंससंठाणसंठिए। यह आहारक शरीर समचतुरस्रसंस्थान वाला होता है। विवेचन-जब किसी चतुर्दश पूर्वधर अप्रमत्त संयत ऋद्धिप्राप्त मुनि को ध्यानावस्था में किसी गहन सूक्ष्म तत्त्व के विषय में कोई शंका हो और उस समय उस क्षेत्र में केवली भगवान् का अभाव हो तब वे आहारकशरीर नामकर्म का उपार्जन करते हैं और प्रमत्तसंयत होते ही उनके मस्तक से रक्त-मांस, हड्डी आदि से रहित एक हाथ का धवल वर्ण वाला मनुष्य के आकार का सर्वाङ्ग-सम्पूर्ण पुतला निकलता है और जहां भी केवली भगवान् विराजते हों, वहां जाकर उनके चरण-कमलों का स्पर्श करता है और स्पर्श करते ही वह वहां से वापिस आकर महामुनि के मस्तक में प्रवेश करता है और उनकी शंका का समाधान हो जाता है। इस आहारकशरीर के अर्जन, निर्गमन और प्रवेश की क्रिया एक अन्तर्मुहूर्त में सम्पन्न हो जाती है। विशेषता यही है कि इसका बन्ध या उपार्जन तो सातवें गुणस्थान में होता है और उदय या निर्गमन और प्रवेश आदि की क्रिया छठे गुणस्थान में होती है। ६०१-आहारयसरीरस्स केमहालिया सरीरोगाहणा पन्नत्ता? गोयमा! जहणणेणं देसूणा रयणी, उक्कोसेणं पडिपुण्णा रयणी। भगवन् ! आहारकशरीर की कितनी बड़ी शरीर-अवगाहना कही गई है? गौतम ! जघन्य अवगाहना कुछ कम एक रत्नि (हाथ) और उत्कृष्ट अवगाहना परिपूर्ण एक रत्नि कही गई है। ६०२-तेआसरीरे णं भंते कतिविहे पन्नत्ते ? गोयमा! पंचविहे पन्नत्तेएगिदिय तेयसरीरे, वि-ति-चउ-पंच०। एवं जाव०। भगवन् ! तैजसशरीर कितने प्रकार का कहा गया है? गौतम ! पांच प्रकार का कहा गया है - एकेन्द्रियंतैजसशरीर, द्वीन्द्रियतैजसशरीर, त्रीन्द्रियतैजसशरीर, चतुरिन्द्रियतैजसशरीर और पंचेन्द्रियतैजसशरीर । इस प्रकार आरण-अच्युत कल्प तक जानना चाहिए। विवेचन- इस सूत्र में एकेन्द्रियादि की अपेक्षा तैजसशरीर के पांच भेद कहकर शेष तैजस शरीर की वक्तव्यता को प्रज्ञापनासूत्र के अनुसार जानने की सूचना की है, उसके अनुसार यहां दी जाती है [भगवन् ! एकेन्द्रियतैजस शरीर कितने प्रकार के कहे गये हैं?] गौतम ! पांच प्रकार के कहे गये हैं। जैसे- पृथिवीकाय एकेन्द्रियतैजसशरीर, अप्कायिक एकेन्द्रिय

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